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तीर्थकर महावीर भगवान् महावीर जब काकंदी पधारे तो उसने भी भगवान् के सम्मुख कूणिक के समान जाकर वंदना की।'
ह-लोहार्गला-लोहार्गला के राजा का भी नाम जितशत्रु था। भगवान् महावीर छद्मरूप काल में मगधभूमि से पुरिमतताल जाते हुए लोहार्गला से गुजरे तो जितशत्रु ने उनका वंदना की थी।'
दत्त'
चम्पा-नामक नगरी थी। पूर्णभद्र नामक उद्यान में पूर्णभद्र-नामक यक्ष का यक्षायतन था।
उस नगर में :दत्त-नामक राजा था। दत्तवती उसकी रानी थी। महाचन्द्र उनका कुमार था।
भगवान् का आना, सवसरण आदि पूर्ण विवरण अदीनशत्रु-सा जान लेना चाहिए।
महाचन्द्र ने पहले श्रावक-धर्म स्वीकार किया और बाद में साधु हो गया । पूरी कथा सुबाहु के समान है ।
१-तेणं कालेणं २ समणे समोसढे । परिसा निग्गाता । राया जहा कूणिश्रो तहा निग्गयो
-अणुतरोववाइयदसाओ, एन० बी० वैद्य-सम्पादित पृष्ठ ५२ २-लोहग्गलं रायहाणिं, तत्थ जियसतू राया, सोय अन्नेण राइ. णासमं निरुद्धो, तस्स चार पुरिसेहिं गहिता पुच्छिज्जत ण साहति...
-आवश्यकचूणि, पूर्वाद्ध, पत्र २६४ ३- विपाकमूत्र [ पी०एल० बैद्य सम्पादित ] श्रु० २ अ०६, पृष्ठ ८३
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