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________________ भक्त राजे ५३५ इस प्रकार चेटक ने अपने काल के सभी प्रमुख राजाओं से पारिवारिक सम्बन्ध स्थापित करके पूरे भारत से वैशाली को सम्बद्ध कर रखा था। कालान्तर में चेटक की इसी पुत्री चेल्लणा ने कुणिक को जन्म दिया और वह कुणिक ही श्रोणिक के बाद मगध की गद्दी पर बैठा । श्रेणिक ने अपने जीवन-काल में ही अपने पुत्र हल्ल-वेहल्ल को सेचनक हाथी और अहारसकं ( अट्ठारह लड़ी का ) हार दे दिया था । कृणिक की पत्नी पद्मावती ने कुणिक को इन वस्तुओं को ले लेने को उसकाया। इस पर हल्ल-वेहल्ल वैशाली चले गये । कणिक ने वैशाली-नरेश चेटक के पास दूत भेजकर अपने भाइयों को और हाथी तथा हार वापस करने को कहा । चेटक ने इसका यह उत्तर भेजा कि ये वस्तुएँ चाहते हो तो उन्हें आधा राज्य दे दो। कृणिक इस पर सेना लेकर अपने १० भाइयों के साथ चम्पा से विदेह पर चढ़ आया। चेडग भी ९ लिच्छिवि, ९ मल्लई कासी-कोसल के गण राजाओं के साथ युद्ध स्थल पर पहुँचे। दोनों ओर से भयानक युद्ध हुआ। इसका सविस्तार विवरण भगवतीसूत्र शतक ७, उद्देशा ९ में तथा निरयावलिकासूत्र में मिलता है। चेटक ने प्रतिपन्न-व्रत ले रखा था; अतः वह एक दिन में एक ही वाण चलाता था । १० दिन में उसके १० अमोघ बाणों से काल आदि कृणिक के १० भाई मारे गये । कुणिक को अपनी पराजय स्पष्ट नजर आने लगी। पर किसी छल-बल से कणिक ने वैशाली को जीत लिया । इस सम्बन्ध में विशेष विवरण उत्तराध्ययन (प्रथम अध्ययन, गाथा ३) की टीका में मिलता है । जय प्रत्येक बुद्धवाले प्रकरण में द्विमुख के प्रकरण में देखिए (पृष्ठ ५६३)। जितशत्रु जैन ग्रन्थों कई राज्यों के राजाओं का नाम जितशत्रु (प्राकृतजियसत्तृ ) मिलता है। उनमें निम्नलिखित जितशत्रु भगवान् के भक्त थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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