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तीर्थकर-महावीर -~-वाहीक कुल में उत्पन्न हुआ हैहयवंश की कन्या की इच्छा करता है । समान कुल में ही विवाह होना योग्य है। अन्य में नहीं, इसलिए मैं श्रेणिक को कन्या नहीं दूंगा । तुम चले जाओ।'
-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ६, श्लोक २२६२२७, पत्र ७८-२ ।।
तब श्रोणिक ने अपने दूतों द्वारा सुज्येष्ठा के अपनी ओर आकृष्ट किया । वह उससे प्रेम करने लगी। एक सुरंग द्वारा उसके हरण की तैयारी हुई; पर संयोगवश चेल्लणा का हरण हो गया और सुज्येष्ठा पीछे रह गयी । इससे उसे वैराग्य उत्पन्न हो गया और वह साध्वी हो गयी ।'
१-जैन-ग्रन्थों में जहाँ-जहाँ श्रेणिक और चेटक का उल्लेख है, उन सभी स्थलों पर कुलों के उल्लेख मिलते हैं। (अ) कहिहं वाहिय कुले देमित्ति पडिसिद्धो
श्रावश्यक हारिभद्रीय वृत्ति, पत्र ६७७-१ (आ) चेडो कहहं वाघियकुलए देमित्ति
-आवश्यकचूर्णि, उत्तरार्द्ध, पत्र १६५ (इ) परिभाविऊण भूवो भणेइ कन्नं न हेहया अम्हें । वाहियकुलंमि देयो जहा गयं जाह तो तुम्मे ।।
-उपदेशमाला सटीक, पत्र ३३६, श्रेणिक के प्रसंग में हमने वाहीक कुल पर विचार किया है और हैहयकुल के. सम्बन्ध में ऐतिहासिक मत इसी प्रसंग में पहले व्यक्त कर चुका हूँ। अतः उनकी पुनरावृति यहाँ अपेक्षित नहीं है। २-(अ) सुखकांक्षिभिरीदक्षा यदाप्यन्ते विडंबनाः॥२६॥
इत्थं विरक्ता सुज्येष्ठा स्वयमापृच्छय चेटकम् । समीपे चन्दनार्यायाः परिव्रज्या मुपादये ॥२६६॥
-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सगं ६, पत्र ८०-१ (श्रा ) सुज्येट्ठा य धिरत्थु कामभोगाणि पब्वइत्ता
___-आवश्यकचूणि, उतरार्द्ध, पत्र १६६ (इ) धिरत्थु कामभोगाणंति पव्वतिया
-आवश्यक हारिभद्रीय टीका, पत्र ६७८-१
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