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________________ ५३१ भक्तराजे जैन ग्रंथों में उनके वंश का गोत्र वासिष्ठ बतलाया गया है ।' पर, चन्द्र-वंश की स्थापना के सम्बन्ध में जैनों की भिन्न मान्यता है । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में आता है: तत्पुत्रं सोमयशसं तद्राज्ये स न्यवो विशत ॥ ७५४ ॥ तदादि सोमवंशो ऽभूच्छा खाशतसमाकुलाः। -~~~-कि ऋषभदेव भगवान् के पुत्र बाहुबली के पुत्र सोमयशस से सोमवंश अथवा चंद्रवंश चला। ऐसा ही उल्लेख पद्मानंद महाकाव्य में भी है: ...........। तदङ्गजं सोमयशोऽभिधानं, निवेशयामास तदीयराज्ये ॥३७॥ तदादि विश्वेऽजनि 'सोम' वंशः, सहस्रसङ्गख्या प्रस्तुतोरुशाखः। यह मान्यता केवल श्वेताम्बरों की ही नहीं है। दिगम्बर-ग्रन्थों में भी इसी प्रकार का उल्लेख मिलता है: योऽसौ बाहुबली तस्माज्जातः सोमयशः सुतः। सोमवंशस्य कर्तासौ तस्य सुनुर्महाबल ॥ १६ ॥ ततोऽभूत्सुबलः सूनुरभूद्भजबली ततः। एवमाद्याः शिवं प्राप्ताः सोमवशोद्रवाः नृपा ॥१७॥ महाराज चेटक स्वयं लिच्छिवि न होते हुए भी, लिच्छिवि-गणतंत्र के १-भागवओ महावीरस्स माया वासिठुसगुतेणं --कल्पसूत्र सुबोधिका टोका, सूत्र १०६, पत्र २६१ २-त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १, सर्ग ५, श्लोक ७५४-०५५ पत्र १४७-२ ३-पद्मानन्द महाकव्य पृष्ठ ४०२ ४-हरिवंशपुराण ( जिनसेन सूरि कृत), सर्ग १३, श्लोक १६-१७, पृष्ठ २२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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