________________
५३०
तीर्थकर महावीर ____ अतः इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि, चेटक भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का श्रावक था ।
महाराज चेटक हैहय कुल के थे। ऐसा उल्लेख जैन ग्रन्थों में स्वतंत्र रूप से भी आया है और चेटक के मुख से भी कहलाया गया है ।
इस हैह्य-कुल की उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुराणों में कहा गया है कि, यह वंश ऐल-वंश' अथवा 'चन्द्र-वंश' की शाखा थी। इस सम्बन्ध में जयचन्द्र विद्यालंकार ने अपनी पुस्तक 'भारतीय इतिहास की रूप-रेखा (जिल्द १, पृष्ठ १२७-१२९) में लिखा है:
"किन्तु, इक्ष्वाकु के समय के लगभग ही मध्यदेश में एक और प्रतापी राजा था। जो मानव-वर्ग का नहीं था। उसका नाम था पुरुरवा ऐल और उसकी राजधानी प्रतिष्ठान थी...। उसका वंश 'ऐल-वंश' या 'चंद्र-वंश' कहलाता है ।...पुरुरसा का पौत्र नहुष हुआ, जिसके पुत्र का नाम ययाति था ।...उसके पाँच पुत्र थे-यदु,तुर्वसु, द्रा, अनु और पुरु।... यदु के वंशज यादव आगे चल कर बहुत प्रसन्न हुए। उनकी एक शाखा हैहय-वंश कहलायी।" १-( अ ) चेडो राया हेहय कुल संभूतो
*-आवश्यकचूणि, उत्तरार्द्ध, पत्र १६४ (श्रा ) वैशालिकश्चेटको हैहय कुल संभूतो
-आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति, पत्र ६७६-२ (३) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ६, श्लोक २२६, पत्र ७८-२ (ई) उपदेशमाला सटीक, पत्र ३३८,
२-पार्जिटर ने 'ऐंशेंट इंडियन हिस्टारिकल ट्रैडिशन" में पुरुरवा को इला का पुत्र लिखा है । पर, जयचन्द्र विद्यालंकार ने इसे गढ़ी हुई कहानी माना है। पुरुरवा के वंश का वर्णन करते हुए पाजिटर ने लिखा है कि पुरुरवा को ५-६ पुत्र थे।... ' उनमें ३ महत्वपूर्ण थे।...आयु, आयुस और अमावसु ।...आयु को पाँच पुत्र थे -नहुष......। नहुष को ६-७ लड़के थे, जिनमें दो यति और ययाति महत्वपूर्ण थे। ययाति को एक पत्नी से दो लड़के थे-यदु और तुर्वसु। यदु को ४ या ५ पुत्र थे। उनमें दो सहस्त्रजित और क्रोष्ट्र महत्व के थे। सहस्रजित के वंशज उसके पौत्र के नाम पर हैहय कहलाये।
--पृष्ठ ५-८७.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org