SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 597
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भक्त राजे ५२६. मिलता कि वह श्रमणोपासक था तथा महावीर का भक्त था । यह हम उसकी सगाई से अनुमान कहते हैं । पर, मालवणिया का ऐसा लिखना उनकी भूल है । जैन-शास्त्रों में तथा जैन-कथा-साहित्य में उसके श्रमणोपासक होने के कितने ही स्थानों पर उल्लेख है। हम उनमें से कुछ यहाँ दे रहे हैं:१-सोचेडवो सावो । ---आवश्यकचूर्णि, उत्तरार्द्ध, पत्र १६४ । २-चेटकस्तु श्रावको। -त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र, पर्व १०, सर्ग ६, श्लोक १८८, पत्र ७७.२। ३-वेसालीए पुरीए सिरिपास जिणेस सासण सणाहो । हेहयकुल संभूमो चेडग नामा निवोअसि ॥ १२ ॥ -उपदेश माला सटीक, पत्र २३८ । श्वेताम्बर ही नहीं दिगम्बर-ग्रन्थों में भी चेटक के श्रावक होने का उल्लेख मिलता है । उत्तरपुराण में आता हैचेटकाख्यातोऽति विख्यातो विनीतः परमाहतः। -उत्तरपुराण, पृष्ठ.४८३ । आगम-ग्रन्थों की टीकाओं में अन्य रूप से उसके श्रावक होने का उल्लेख है। भगवतीसूत्र ( शतक ७, उद्देशा ८) में युद्ध के प्रसंग पर टीका करते हुए दानशेखर गणि ने लिखा है :चेटक प्रतिपन्न प्रतिशतया दिनमध्ये एकमेव शरंमुच्यते । ---पत्र १११-१ ऐसा ही उल्लेख भगवतीसूत्र की बड़ी टीका में भी है। प्रतिपन्न व्रतत्वेन दिन मध्ये एकमेव शरं मुंचति । -पत्र ५७९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy