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भक्त राजे
५२१ वेश्या श्राविका का रूप बनाकर गयी और कूलबालक को अपने जाल में फँसाकर वैशाली ले आयी । नैमित्तिक का वेश धर कर कूलवालक वैशाली में गया । वहाँ उसने सुव्रतस्वामी का स्तूप देखा, जिसके प्रभाव से वैशाली का पतन नहीं होता था। लड़ाई से आजिज आ कर लोगों ने छद्म वेश धारी कुलवालक से घेरा टूटने की तरकीब पूछी, तो कूलबालक ने कहा जब तक यह स्तूप न टूटेगा, घेरा न हटेगा। लोगों ने स्तूप तोड़ डाला । समाचार पाकर पहले तो कुणिक ने घेरा हटा लिया; पर बाद में वैशाली पर आक्रमण करके वैशाली पर विजय प्राप्त की।
विजय के बाद कूणिक चम्पा लौटा । चम्पा लौटने के बाद इसे चक्रवर्ती चनने की इच्छा हुई । कुणिक ने इस सम्बन्ध में महावीर स्वामी से प्रश्न पूछा । महावीर स्वामी ने कहा कि तुम चक्रवर्ती नहीं हो सकते । सब चक्रवर्ती हो चुके हैं। फिर कूणिक ने पूछा-चक्रवर्ती के लक्षण क्या हैं ? भगवान् ने कहा
चउदसरयणा छक्खंड भरह सामी य ते हुति।'
इसके बाद कुणिक ने नकली १४ रन बनाये और ६ खंड के विजय को निकला को निकला। अंत में सम्पूर्ण सेना लेकर तिमिस्त्र-गुफा की ओर गया । वहाँ अट्ठम तप किया। तिमिस्र-गुफा के देव कृतमाल ने पूछा--"तुम कौन हो ?" कूणिक ने कहा-"मैं चक्रवर्ती हूँ।" "सब चक्रवर्ती तो बीत चुके, तुम कौन ?' इस पर कूणिक शेखियाँ बताने लगा
१-उपदेशमाला दोघट्टी टीका, पत्र ३५३ ।
२-भरत चक्री की तमिस्रा-यात्रा के प्रसंग में त्रिषष्टिशलाकपुरुषचरित्र पर्व १, सर्ग ४, श्लोक २३६ (पत्र १९.१) में अष्टमतप आता है । मिस हेलेन ने बड़ौदा में प्रकाशित अंग्रेजी-अनुवाद में इसका अर्थ ४ दिनों का उपवास लिखा है। यह उनकी भूल हैं । अष्टम तप में ३ दिन का उपवास होता है।
३-आवश्यकचूणि उत्तरार्द्ध, पत्र १७६ -- १७७ ।
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