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भक्त राजे चेटक राजा को जीतने के लिए कूणिक ने ११ वें दिन अठ्ठम तप किया । इससे शक्र और चमरेन्द्र कूणिक के पास आये ।' उनसे कूणिक ने चेटक को पराजित करने की बात कही, तो शक्र ने कहा-"चेटक श्रावक है। मैं उसे मार नहीं सकता। पर, तुम्हारी रक्षा अवश्य कर सकता हूं।" ऐसा कह कर कुणिक की रक्षा के लिये शक्र ने उसे एक अभेद्य कवच दिया और चमरेन्द्र ने महाशिलाकंटक और रथ मुशल-युद्ध की विकुर्वणा की। ____ इन्द्रों की इस प्रकार की सहायता का उल्लेख भगवतीसूत्र (सटीक) शतक ७, उद्देशः ९ सूत्र ३०१ पत्र ५८४ में भी आता है । वहाँ उसका कारण भी दिया है:__ गोयमा सक्के देवराया पुवसंगतिए, चमरे अमुरिंदे असुर कुमार राया परियाय संगतिए।
-गौतम ! शक्र कूणिक राजा का पूर्वसांगतिक ( पूर्वभव ) का मित्र था और असुरकुमार ( चमरेन्द्र ) कूणिक का पर्याय संगतिक ( तापसजीवन का ) मित्र था।
१--निरयवलिका सटीक, पत्र ६-१ २-निरयावलिका सटीक (आमभोदय समिति ] पत्र ६-१
३-राक्रेन्द्रस्य कूणिक राजा पूर्वसङ्गतिकश्चमरेन्द्रस्य च प्रवज्यासङ्गतिकः प्रतिपादितोऽस्ति तत्कथं मिलति इति प्रश्नोऽत्रोत्तर--सौधर्मन्द्रस्य कार्तिक श्रेष्ठिभवे कूणिकराज्ञो जीवो गृहस्थत्वेन मित्रमस्तीति तेन पूर्वसङ्गतिकः, चमरेन्द्रस्य तु पूरणतापस भवे कूणिक जीवः तापसत्वेन मित्रं तेन पर्यायसङ्गतिकः कथितोऽस्तीति श्री भगवती सूत्र सप्ताशतक नवमोद्देशक वृत्तौ इति बोध्यम् ॥
-प्रश्नरत्नाकराभिधः श्री सेन प्रश्नः (दे० ला०) पत्र १०३-१ । ४-- कूणिक के पूर्व भव का वृतांत आवश्यकचणि उत्तरार्ध, पत्र १६६ में दिया है।
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