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भक्त राजे
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हार' हल और बिल्ल को दे दिये थे । इस सेचनक हाथी और देवप्रदत्त हार का मूल्य श्रेणिक के पूरे राज्य के बराबर था ।
जब कूणिक चम्पा में राज्य कर रहा था, तो उस समय एक बार उसका भाई विल्ल सेचनक हाथी पर बैठकर अपनी पत्नियों के साथ गंगा नदी में स्नान करने गया ।' उसका वैभव देखकर कुणिक की रानी पद्मावती ने कृणिक से कहा - "हे स्वामिन्, विहल्ल कुमार सेचनक हाथी के द्वारा अनेक प्रकार की क्रीड़ा करता है । यदि आपके पास गंधहस्ति नहीं है तो इस राज्य से क्या लाभ ?"
कूणिक ने पद्मावती को बहुत समझाने की चेष्टा की; परन्तु पद्माबती अपने आग्रह पर अटल रही और कूणिक को ही उसके आगे झुकना पड़ा | कूणिक ने हल्ल-विहल्ल से हाथी और हार माँगे । भय वश दोनों भाई अपने नाना चेटक के पास चले गये । कुणिक ने चेटक के पास दूत भेजकर अपने भाइयों को वापस भेजने को कहा । चेटक ने इनकार
निरयाबलिकासूत्रम् सटीक ( आगमोदय
१- हार की उत्पत्ति की कथा समिति ) पत्र ५-१ में उपलब्ध हैं ।
२ – हल्लस हत्थी दिन्नो सेयणगो, विहल्लस्स देवदिन्नो
हारो.
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निरयावलिका सटीक पत्र ५-१ ३– किरजावतियं रज्जस्स मोल्लं तावतियं देवदिणस्स हारस्स सेतणगस्स.
- आवश्यकचूर्णि उत्तरार्द्ध, पत्र १६७
४ – ए गं से वेहल्ले कुमारे सेयणएवं गंधहत्थिणा अन्तेउर परियाल संपरिवुडे चंपं नगरिं मज्झज्मेणं निग्गच्छइ । २ अभिक्खणं २ गंगं महााई मज्जयं श्रयरइ,
- निरयावलिया ( गोपाणी - सम्पादित ) पृष्ठ १६
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