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________________ ५१२ तीर्थकर महावीर करता रहेगा। इस विचार से उसने अपने पुत्र को राज्य न देकर अपनी बहन के लड़के केसी को राज्य दे दिया । और, स्वयं उत्सव पूर्वक जाकर उसने भगवान् महावीर के पास दीक्षा ग्रहण कर ली । बाद में एक उपवास से लेकर एक महीने तक के उपवासों तक का कठिन तप किया ।' उस समय राजा काया के शोषण करने का विचार करने लगा। बचाखुचा और रूखा-सूखा आहार करने से एक बार वह बीमार पड़ गया । उस समय वैद्यों ने उसे दही खाना बताया। इस पर राजा गोकुल. में विहार करने लगा; क्योकि अच्छा दही मिलना वहीं सम्भव था। । एक बार उद्रायण विहार करते हुए वीतभय में आया । केशीराजा के मंत्रियों ने केशी राजा को बहकाया कि उद्रायण उसका राज्य छीनने की इच्छा से आया है। दुर्बुद्धि केशी उनके कहने में आ गया और विषमिश्रित भात उद्रायण को खाने के लिए दिया । कई बार एक देवीने उसका विष निकाल लिया। पर एक बार राजा विष खा ही गया। जब उद्रायण को विष खा जाने का ज्ञान हुआ तो समताभाव से उसने एक मास का अनशन किया और समाधि में रहकर केवलज्ञान पाकर मोक्ष गया। राजा के मुक्ति पाने से देवी अत्यन्त क्रुद्ध हुई । उसने धूल की वर्षा की और वीतभय को स्थल बना दिया। एक मात्र कुमार जो उद्रायण का शैयातर था निर्दोष था । उसे देवी सिनपल्ली में ले गयी एक मात्र वही जीवित था । अतः उसके ही नाम पर उस जगह का नाम कुम्भकारपक्खेव पड़ा। १-चउत्थ-छठ्ठ-अहम-दसम-दुवालस-मासद्ध-मासाईणि तवोकम्माणि कुवमाणे विहरइ। - उत्तराध्ययन नेमिचंद्र टीका, पत्र २५५-१ चउत्थ = १ उपवास, छह %D२ उपवास, अट्टम-३ उपवास, दसम = ४ उपवास दुवालस-५ उपवास, मासद्ध = १५ उपवास, मासाईणि =१ मास का उपवास । २-संस्कृत में इसका नाम कुम्भाकरकृत मिलता है। उत्तराध्ययन भावविजय की टीका १८ अध्ययन श्लोक २१६ पत्र ३८७२; ऋषिमण्डलप्रकरणवृत्ति, पत्र १६३-१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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