________________
तीर्थंकर महावीर
अलक्ख भगवान् का उपदेश सुनने गया । भगवान् के उपदेश से प्रभावित होकर अलक्ख ने गृहस्थ जीवन का परित्याग करने का निश्चय कर लिया और अपने ज्येष्ठ पुत्र को गद्दी पर बैठाकर स्वयं साधु हो गया । साधु होकर उसने ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। वर्षों तक साधु-जीवन व्यतीत किया और विपुल - पर्वत पर निर्वाण को प्राप्त किया ।
राजगृह के निकट था । भगवतीसूत्र में पाठ
५०८
यह विपुल - पर्वत आया है ।
रायगिहे नगरे समोसरणं विपुलं पव्वयं' | जैन-ग्रन्थों में राजगृह के निकट पाँच पर्वतों का उल्लेख मिलता है १ विभारगिरि, २ विपुलगिरि ३ उदयगिरि, ४ स्वर्णगिरि ५ रत्नगिरि मेघविजय उपाध्याय रचित दिग्विजय महाकाव्य में आता है :
वैभार रत्न विपलोदयहेम शैलैः ।
अकबर ने ७ वीं माह उरदी बहेस मुताबिक माह रबीउल अव्वल सन् ३७ जुलूसी को एक फरमान श्री हीरविजय सूरि के नाम दिया था । उसमें दो स्थानों पर 'राजगृह के पाँचो पर्वत' उल्लेख आया है ।
उद्रायण
भगवान् महावीर के काल में सिंधु -सौवीर देश में उद्रायण नामक राजा राज्य करता था । उसकी राजधानी वीतभय थी ।
जैन ग्रंथों में तो सर्वत्र सिन्धु- सौवीर की राजधानी वीतभय ही बतायी गयी है, पर आदित्त - जातक ( जातक हिन्दी अनुवाद, भाग ४; पृष्ठ १३९ ) में सिंधु - सौवीर की राजाधानी रोरुवा ( अथवा रोरुव ) दिया है। ऐसा ही
१ - भगवतीसूत्र ( बेचरदास - सम्पादित ) शतक २, उद्देशा १, ५४ २४२-२४४ २ - मेघ विजय उपाध्याय रचित दिग्विजय महाकाव्य, पृष्ठ १३० ।
३ -- जैनतत्त्वादर्श, उत्तरार्द्ध, पृष्ठ ५२६ - ५३० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org