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तीर्थकर महावीर
कालान्तर में एक बार मध्यरात्रि में धर्मजागरण जागते हुए सुबाहुकुमार के मन में यह संकल्प उठा कि वे नगर आदि धन्य हैं जहाँ भगवान् महावीर विचरते हैं और वे राजा आदि धन्य हैं जो भगवान् के पास मुंडित होते हैं । यदि भगवान् यहाँ आयें तो मैं उनसे प्रव्रज्या लूँ।
सुबाहुकुमार के मन की बात जान कर भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विहार करते हुए हस्तिशीर्ष-नामक नगर में आये और पुष्पकरंडक-नामक उद्यान के यक्षायतन में ठहरे । फिर राजा वंदन करने गये। सुबाहुकुमार भी गया । धर्मोपदेश सुनकर सुबाहुकुमार ने प्रव्रज्या लेने की अनुमति माँगी । मेघ-कुमार की तरह उसका निष्कमण-अभिषेक हुआ और उसके बाद उसने प्रव्रज्या ले ली। ____साधु होकर सुबाहुकुमार ने एकादशादि अंगों का अध्ययन किया तथा उपवास आदि अनेक प्रकार के तपों का अनुष्ठान किया। बहुत काल तक श्रामण्यपर्याय पाल कर एक मास की संलेखना से अपने आपको आराधित कर २६ उपवासों के साथ आलोचना और प्रतिक्रमण करके आत्मशुद्धि द्वारा समाधि प्राप्त कर काल को प्राप्त हुआ।
अप्रतिहत' सौगंधिका-नाम की नगरी थी। उसमें नीलाशोक-नामक उद्यान था। उसमें सुकाल नामक यक्ष का स्थान था।
उस नगरी में अप्रतिहत नामक राजा का राज्य था। सुकृष्णा उसकी मुख्य देवी थी। तथा महाचन्द्र उनका कुमार था । ( महाचंद्र के जन्म, शिक्षा-दीक्षा, विवाह आदि का विवरण सुबाहु सरीखा जान लेना चाहिए ।)
भगवान् महावीर के सौगंधिका आने पर अप्रतिहत राजा भी बंदन आदि के लिए समवसरण में गया ( पूरा विवरण अदीनशत्रु-सा ही है )
१-विपाकसूत्रा (पी० एल० वैद्य-सम्पादित ) श्रु० २, अ० ५, पष्ठ ८२ ।
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