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दो शब्द
तीर्थङ्कर महावीर का प्रथम भाग आपके सम्मुख पहुंच चुका है और अब यह उसका द्वितीय भाग अापके हाथों में है। यह भाग कैसा बना, इसके निर्णय का भार आप पर है। इस भाग में पृष्ट-संख्या प्रथम भाग की अपेक्षा अधिक है। पुस्तक के स्थायी महत्त्व को ध्यान में रखकर इस भाग में हमने अच्छे कागज का भी उपयोग किया है।
प्रस्तुत पुस्तक के लेखक का परिचय कराने की आवश्यकता नहीं है। दीक्षा की दृष्टि से श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन-साधुनों में प्रस्तुत पुस्तक के लेखक जैनाचार्य श्री विजयेन्द्र सूरि जी महाराज ज्येष्टतम प्राचार्य हैं। आपकी साहित्य-सेवा से प्रभावित होकर चेकोस्लोवाकिया की अोरियंटलसोसाइटी ने आपको अपना मानद सदस्य निर्वाचित किया था। प्राण नागरी प्रचारिणी सभा के भी मानद आजीवन सदस्य हैं और प्राकृत टेक्सट सोसाइटी के संस्थापक सदस्य हैं। प्राचार्यश्री का यथातथ्य परिचय तो पाठकों का 'लेटर्स टु विजयेन्द्र सूरि' देखने से ही प्राप्त होगा, जिसमें विदेशों से उनके पास आये कुछ पत्रों का संकलन है। ___इस पूरी पुस्तक की तैयारी तथा छपाई में लगभग २४॥ हजार व्यय पड़ा । इतना व्यय होने पर भी हमने घाटा सहकर सबको सुलभ होने की दृष्टि से पुस्तक का मूल्य २०) मात्र रखा है। पुस्तक के मूल्य को दृष्टि में रखकर एक जैन-संस्था ने हमें सहाएता देने से इनकार कर दिया था। हमारे पास उसी संस्था की एक पुस्तक है-भगवतीसूत्र का १५-चौ शतक और उसकी टीका । उस पुस्तक में कुल ८० पृष्ट हैं और उसका मूल्य ढाई रुपये हैं। उस पुस्तक का पाठ तो भगवती के छ पत्र दे देने मात्र से कम्पोज हो सकता था। और, इस पुस्तक के व्यय
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