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इस बीच मैं कई बार बीमार पड़ा । वैद्य -मारतण्ड कन्हैया लाल भेड़ा ने जिस लगन और निस्पृहता से मेरी चिकित्सा आदि की व्यवस्था की उसके लिए उन्हें आशीर्वाद |
मेरे लिखने में मतिभ्रम से अथवा प्रेस की असावधानी से यदि कोई त्रुटि रह गयी हो तो आशा है वाचकवर्ग मुझे क्षमा करेगा ।
अंत में मैं परमोपासक भोगीलाल लहेरचन्द झवेरी को भी अंतःकरणपूर्वक धर्मलाभ कहना चाहता हूँ । उनकी ही वसति में यह ग्रंथ निर्विघ्न रीत्या समाप्त हो सका । उनके सहायक होने से ही यह ग्रंथ इतनी जल्दी तैयार हो सका है ।
वसन्तपंचिमी
संवत् २०१८ वि० धर्म संवत् ४०
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विजयेन्द्र सूरि ( जैनाचार्य )
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