SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४७ ) अकेडमी की दृष्टि और किसी ओर न जाकर इसी पुस्तक पर क्यों पड़ी ? धर्म-निरपेक्ष राज्य में सरकार से सहायता प्राप्त करने वाली संस्था ऐसी पुस्तक क्यों प्रकाशित करती है, जिसमें दूमरे धर्म की भावना पर आघात पड़े। धर्मानन्द बुद्ध का जीवनचरित्र लिख रहे थे । उसमें जैनों का ऐसा निन्दनीय उद्धरण न तो अपेक्षित था और न वर्णनक्रम से उसकी कोई आवश्यकता थी। धर्मानन्द ने इसे खाहमख्वाह इसमें धुसेड़ दिया। और, अकेडमी के सम्पादकों को क्या कहें जिन्होंने अनपेक्षित खंड अविकल रहने दिये। __ इस पुस्तक की सामग्री जुटाने के लिए दौड़-धूप करने में, तथा मेरी सेवा-सुश्रुषा में जैनरत्न काशीनाथ सराक ने जो निस्वार्थ सहायता की वह स्तुत्य है। २४ वर्षों से वह निरन्तर मेरी सेवा में संलग्न हैं और यहाँ तक कि अपना सब कुछ छोड़कर मेरे साथ पाद-विहार तक करते रहे । अब तो मेरी दोनों आँखों में मोतिया है और शरीर वृद्धावस्था का है । काशीनाथ ही वस्तुतः इस उम्र में मेरे हाथ-पाँव हैं। विद्याविनोद ज्ञानचन्द्रजी ने इस पुस्तक को रूप-रंग देने में सर्व प्रकार से प्रयत्न किया और समय-समय पर उपयोगी सूचनाएं देने में उन्होंने किसी प्रकार का संकोच न रखा। - इस ग्रंथ की तैयारी में श्री काशीनाथ सराक और ज्ञानचन्द्र मेरे दोनों हाथ-सरीखे रहें । यदि ये दोनों हाथ न होते तो यह पुस्तक पाठकों के हाथों में कभी न आती। अतएव मैं अंतःकरणपूर्वक इन दोनों को विशेष रूप से धर्मलाभ और धन्यवाद देता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy