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________________ को देखने की सुविधा प्राप्त करायी, यह बात किसी से छिपी नहीं है। यूरोप, अमेरिका आदि देशों में जैन-साहित्य पर जो कुछ काम हुआ, उसका श्रेय बहुत-कुछ गुरु महाराज के विद्या-दान को ही है। उनके उदाहरण पर ही मैं भी आजीवन देशी-विदेशी विद्वानों की सहायता करता रहा। जापान में जैनशास्त्रों के अध्यापन की कोई व्यपस्था नहीं थी, यद्यपि वहाँ डाक्टर शूब्रिग के एक प्राकृतभिज्ञ शिष्य एक विश्वविद्यालय में थे। डाक्टर शूबिंग के आग्रह पर मैंने उनको पुस्तकों की सहायता की और अब वहाँ भी क्यूश-विश्वविद्यालय में डाक्टर मत्सुनायी की अध्यक्षता में जैन- साहित्य पढ़ाने की व्यवस्था हो गयी। अपने शास्त्रों और विचारों को अधिक प्रचारित और प्रसारित न करने का ही यह फल है कि, अभी भी हमारे साहित्य का प्रचार अन्य धर्मों से कम है और तथाकथित साक्षर लोग भी ऐसी-ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें कर बैठते हैं, जिसे कहते लज्जा लगती है । साहित्य-अकेडमी से प्रकाशित एक पुस्तक में भगवान् महावीर को लेखक ने 'नट' लिखा है। मैं तो कहूँगा कि ऐसी अकेडमी और ऐसे उसके लेखक रहे तो भारत के नाम पर धब्बा लगाने के अतिरिक्त ये और क्या करेंगे। अकेडमी की एक अन्य पुस्तक धर्मानंद कोसाम्बी का 'भगवान् बुद्ध' है। यह बुद्ध का जीवन-चरित्र है। बुद्ध पर छोटे-बड़े कितने ही चरित्र-ग्रंथ हैं। कितने ही मूल ग्रंथ हैं। जिनके प्रकाशन की अतीव आवश्यकता आज भी थी। पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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