________________
तीर्थंकर महावीर
फिर शंख को यह विचार आया - " भोजन आदि का स्वाद लेते हुए पोषध स्वीकार करना मुझे स्वीकार्य नहीं है । मैं तो पोषध में ब्रह्मचर्य पूर्वक मणि-स्वर्ण आदि का त्याग कर डाभ का संथारा विछा कर अकेले पोषध स्वीकार करूँगा ।" ऐसा विचार कर अपनी पत्नी की अनुमति लेकर वह पोषधशाला में पाक्षिक पोषध का पालन करने लगा ।
५००
अन्य श्रमणोपासकों ने जब सत्र प्रबंध कर लिया और शंख नहीं आया तो उसे बुलाने का निश्चय किया । पुष्कल बुलाने के लिए शंख के घर गया । शंख के पौषध व्रत ग्रहण करने की बात जानकर वह उस स्थान पर गया जहाँ शंख था । शंख ने उससे कहा- " आप लोग आहार आदि का सेवन करते हुए व्रत करें । "
एक दिन मध्यरात्रि के समय धर्मजागरण करते हुए शंख के मन में विचार हुआ कि, भगवान् का दर्शन करके तब पाक्षिक पोषध की पारणा करूँ । जब वह भगवान् को वंदन करने गया तो धर्मोपदेश के बाद भगवान् ने कहा - "हे आर्यो तुम लोग शंख की निन्दा मत करो । यह शंख श्रमणोपासक धर्म के विषय में दृढ़ है ।" इसके बाद गौतम स्वामी ने भगवान् से धर्मजागरण आदि के सम्बंध में प्रश्न पूछे । फिर शंख ने क्रोध, मान आदि के सम्बंध में अपनी शंकाएँ भगवान् से पूछ कर मिटाय ।
जब शंख चला गया तो गौतमस्वामी ने पूछा46. 'क्या शंख साधु होने में समर्थ है ?" भगवान् ने ऋषिभद्रपुत्र सरीखा ही उत्तर दिया | इसके सम्बंध में कल्पसूत्र में आता है
समणस्स णं भगवओो महावीरस्स संख सयगपामोक्खाणं समणोवासगाणं.
- कल्पसूत्र सुबोधिकाटीका सहित सूत्र १३६ पत्र ३५७ इससे स्पष्ट है कि वह कितना महत्वपूर्ण श्रमणोपासक था ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org