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श्रावक-श्राविका
४६६ फाल्गुनी-सालिहीपिया की पत्नी। देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ४८९ ।।
बहुल-देखिए तीर्थंकर महावीर, भाग १, पृष्ठ १९२, भाग २ पृष्ठ ११० ।
बहुला-चुल्लशतक की पत्नी-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ४६४ ।।
भद्रा-कामदेव की पत्नी-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ४५६ ।
मदुक-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ २४७
महाशतक-भगवान् के १० मुख्य श्रावकों में आठवाँ । देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ४८३-४८७ ।
रेवतो-महाशतक की पत्नी-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ ४८३ ।
रेवती-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ १३४ । लेप-देखिए, तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ २५२ । विजय-देखिए तीर्थङ्कर महावीर, भाग २, पृष्ठ १०९ ।
शंख-श्रावस्ती-नामक नगर में कोष्ठक-चैत्य था । उस नगरी में शंख-प्रमुख बहुत-से श्रमणोपासक रहते थे। उस शंख नामक श्रमणोपासक को उत्पला-नामकी स्त्री थी। वह उत्पला श्रमणोपासिका थी। उसी श्रावस्तीनगरी में पुष्कली श्रमणोपासक था ।
उस समय एक बार भगवान् श्रावस्ती पधारे। भगवान् ने धर्मकथा कही। उसके अन्त में श्रावकों ने भगवान से प्रश्न पूछे और उनका अर्थ ग्रहण किया ।
अंत में शंख-नामक श्रमणोपासक ने सभी श्रामणोपासकों से कहा--- "हे देवानुप्रिय ! तुम लोग पुष्कल अशन, पान, खादिम, स्वादिम, आहार तैयार कराओ। हम लोग इनका आस्वाद लेते पाक्षिक पोषध का अनुपालन करते विहार करें ।'' श्रमणोपासकों ने उसे विनय पूर्वक स्वीकार कर लिया ।
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