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तीर्थकर महावीर से, गोली से, ओषध से, भेषज से रोग दूर करने का प्रयास किया पर निष्फल रहे।
नंदमणिकार का मन अंत समय तक बावड़ी में रहा; अतः मरकर वह उसी बावड़ी में मैंढक हुआ ।
पुष्करिणी पर आये लोग नंद की प्रशंसा करते । उसे सुनकर उसे पूर्वभव का स्मरण हो आया कि श्रमणोपासक-पर्याय शिथिल करने के कारण वह मेढक हुआ। वह पश्चाताप करने लगा और संयम पालने का उसने संकल्प ले लिया तथा अपनी हिंसक प्रवृत्ति बंद कर दी ।
एक बार पुष्करिणी में स्नान के लिए आये लोगों के मुख से उसने मेरे आने की बात सुनी और बाहर निकलकर प्लुत गति से मेरी ओर चला।
उस समय श्रेणिक मेरा दर्शन करने आ रहा था । वह श्रेणिक के दल के एक घोड़े के पैर के नीचे दब गया। "श्रमण भगवान् महावीर को मेरा . नमस्कार हो', यह उसने अपनी भाषा में कहा । अच्छे ध्यान को ध्याते हुए वह मेंढक मर गया । वही दुर्दुर नामक तेजस्वी देव हुआ ।' . नंदिनीपिया-भगवान् के १० महाश्रावकों में नवाँ । देखिए तीर्थकर महावीर भाग २, पृष्ठ ४८८ ।।
पालिय-श्रमण-श्रमणियों के प्रसंग में समुद्रपाल का वर्णन देखिए । उत्तराध्ययन के २१ वें अध्ययन में इसके लिए आता है
चंपाए पालिए नाम, सावए आसि वाणिए । महावीरस्स भगवओ, सीसे सो उ महप्पणौ ॥ १॥ पुष्कली-देखिए तीर्थंकर महावीर भाग २, पृष्ठ ४९९ ।
पुष्या-कुण्डकोलिक की पत्नी । देखिए तीर्थकर महावीर, भाग २, पृष्ठ ४६६ ।
१- पृष्ठ ५१ पर जिस कुष्ठी का उल्लेख कर आये हैं, वह यही दुईकांक देव था।
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