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तीर्थकर महावीर हिरण्य कोटि, ४-५-६ प्रत्येक के पास १८-१८ कोटि, ७-तीन कोटि, ८चौबीस कोटि, ९-१० बारह बारह कोटि द्रव्य उनके पास थे । ७ ॥
उल्लण-अंगोछा, दातुन, फल, अभ्यंग, उद्वर्तन, स्नान, वस्त्र, विलेपन, पुष्प, आचरण, धूप, पेय, भक्ष्य, ओदन, सूप, घी, शाक, मधुर फल, रस, भोजन, पानी, ताम्बूल, ये २१ प्रकार के अभिग्रह आनन्दादि श्रावकों के थे ।। ८-९ ॥
ऊर्ध्व में सौधर्म देवलोक तक, अधो दिशा में रत्नप्रभा लोलुपच्युत नरक तक, उत्तर दिशा में हिमवन्त पर्वत तक, और शेष दिशाओं में ५०. योजन तक का अवधि ज्ञान दसों श्रावकों को था ॥ १० ॥
इन सभी श्रावकों ने दर्शन, व्रत, सामायिक, पोषध, कायोत्सर्ग प्रतिमा, अब्रह्मचर्यवर्जन, सच्चित्ताहारवर्जन, आरम्भवर्जन, प्रेष्यवर्जन, उदिष्टवर्जन, और ११ प्रतिमाओं का पालन किया । २० वर्षों तक श्रमणोपासक-धर्म पाला, एक मास का अनशन किया, सौधर्मकल्प में ४ पल्योपम की उनकी स्थिति है और अंत में ये सभी महाविदेह में जन्म लेकर मोक्ष जायेंगे।
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