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________________ ८ महाशतक 9 राजगृह नगर था | उस नगर में श्रेणिक नाम का राजा राज्य करता था । उस राजगृह-नगर में महाशतक - नामक आदय और समर्थ व्यक्ति रहता था । उसके पास कांस्य सहित आठ करोड़ हिरण्य निधान में, आठ करोड़ प्रविस्तर पर आठ करोड़ वृद्धि पर था । उस महाशतक को रेवती प्रमुख तेरह पत्नियाँ थीं । वे सभी अत्यंत रूपवती थीं । रेवती के पिता के घर से उसे आठ कोटि हिरण्य मिला था और दस हजार गौवों का एक व्रज मिला था । शेष १२ पत्नियों के पिता के घर से केवल एक-एक कोटि हिरण्य मिला था और एक-एक व्रज मिले थे । भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम विहार करते हुए • समवसरण हुआ और परिषदा वंदन करने निकली । महाशतक ने भी भगवान् के निकट श्रावकधर्म स्वीकार कर लिया । महाशतक ने कांस्य सहित आठ करोड़ हिरण्य और आठ और अपनी १३ पत्नियों को छोड़कर शेष नारियों से किया । उसने यह भी व्रत लिया कि, दो द्रोण प्रमाग पात्र का ही व्यवहार प्रतिदिन करूँगा । उसके बाद श्रमणोपासक महाशतक जीव- अजीव आदि के ज्ञाता के रूप में विचार करता रहा । राजगृह पधारे । आनन्द के समान व्रज का व्रत लिया मैथुन का परित्याग हिरण्य से भरे कांस्य १ - सकांस्य की टीका उपासकदशांग में इस प्रकार दी है:- :- सह कांस्येन द्रव्यमान विशेषेण सकांस्या ( पत्र ४८-२ ) अभिधान राजेन्द्र (भाग ३, पृष्ठ १८० ) में उसके लिए लिखा है : आढक इति प्रसिद्धे परिमाणे च । आप्टेज संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी भाग १ पृष्ठ ३२१ में आढ़क का परिमाण इस प्रकार दिया है द्रोण का चतुर्थांश६४ प्रस्थ १६ कुडव ( लगभग ७ रत्तल ११ औंस ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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