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सद्दालपुत्र
४८१ (प्रतिहारिक ) पीठ यावत् संथारा देता हूँ। आप जाइए मेरी कुम्भकारी की दूकानों से (प्रातिहारिक ) पीठ फलक आदि ले लीजिए।' इसके बाद मंखलिपुत्र उसकी दूकानों से ( प्रातिहारिक ) पीठ फलक आदि लेकर विचरने लगा।
इसके बाद मंखलिपुत्र गोशाला आख्यान' से, प्रज्ञापना से, संज्ञापना और विज्ञापना से सहालपुत्र को निर्ग्रन्थ-प्रवचन से चलायमान करने, क्षुब्ध कराने और विपरिणाम कराने में असमर्थ रहा तो शान्त, तान्त और परितान्त होकर पोलासपुर नगर से निकल कर बाहर के देशों में विचरने लगा।
इस प्रकार सद्दालपुत्र को विविध प्रकार के शील आदि पालन करते यावत् आत्मा को भावित करते १४ वर्ष व्यतीत हो गये । १५-वाँ वर्ष जब चालू था तो पूर्वरात्रि के उत्तर भाग में यावत् पौषधशाला में श्रमण भगवान् महावीर के अति निकट की धर्मप्रति स्वीकार करके सद्दालपुत्र विचरने लगा। तब पूर्वरात्रि के उत्तरार्ध काल में उसके समीप एक देवता आया । वह देवता नीलकमल के समान तलवार हाथ में लेकर बोला और चुलनीपिता श्रावक के समान उस देवता ने सब उपसर्ग किये । अंतर केवल यह था कि इस देवता ने उसके प्रत्येक पुत्र के मांस के नौ-नौ टुकड़े किये
१ 'आघवणाहिं य' ति आख्यानैः -उपासगदशांग सटीक पत्र ४७ २ 'प्रज्ञापनाभिः'~भेदतोवस्तु प्ररूपणाभिः-वही ३ संज्ञापनाभिः-सज्जान जननैः-वही ४ विज्ञापनाभिः-अनुकूलभणितैः-वही
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