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________________ सद्दालपुत्र वहाँ आयी । वहाँ पहुँच कर वहाँ यान से नीचे उतरी और चेटियों के साथ वह भगवान् महावीर के सम्मुख गयी। वहाँ पहुँच कर उसने तीन बार भगवान् की वंदना की, और वंदन-नमस्कार करके न अति दूर और न अति निकट हाथ जोड़ कर खड़ी रहकर उसने पर्युपासना की। भगवान् ने वृहत् परिपदा के सम्मुख उपदेश किया। भगवान् का उपदेश सुनकर अग्निमित्रा बड़ी संतुष्ट हुई । उसने भगवान् से कहा "हे भगवान् ! मैं निर्गथ-प्रवचन पर श्रद्धा करती हूँ। आपके पास जिस प्रकार बहुत से क्षत्रिय प्रव्रजित हुए वैसे मैं प्रवजिति होने में समर्थ तो नहीं हूँ पर मैं पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत अंगीकार करना चाहती हूँ। हे भगवन् ! इस पर आप प्रतिबंध न करें ।" भगवान् के सम्मुख उसने १२ प्रकार का गृहस्थधर्म स्वीकार कर लिया। उसके बाद वह वापस चली आयी। __ कालान्तर में भगवान् उद्यान से निकल कर अन्यत्र विहार करने चले गये। उसके बाद श्रमणोपासक होकर सद्दालपुत्र जीवाजीव आदि तत्त्वों का जानकार होकर विचरण करता रहा। इस बात को सुनकर मंखलिपुत्र गोशालक को विचार हुआ-"सद्दालपुत्र ने आजीवक-धर्म को अस्वीकार कर अब निग्रंथ-धर्म स्वीकार कर लिया है।" ऐसा विचार करके वह पोलासपुर में आजीवक-सभा में आया। वहाँ पहुँचकर उसने पात्रादि उपकरण रखे और आजीवकों के साथ सद्दालपुत्र श्रमणोपासक के घर आया । सद्दालपुत्र ने गोशालक को आते देखा। पर, उसके प्रति उसने किसी भी रूप में आदर नहीं प्रकट किया। ऐसा देखकर गोशालक खड़ा रहा। सद्दालपुत्र को आदर न करते देख, और उसे भगवान् महावीर का गुणगान करते देख, मंखलिपुत्र गोशालक बोला--- "हे देवानुप्रिय यहाँ महामाहण आये थे ?' इस पर सद्दालपुत्र श्रमणोपासक ने पूछा-'हे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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