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तीर्थकर महावीर करने की मेरी इच्छा है।" और, आनंद के समान सद्दालपुत्र ने भी श्रमणो-पासक-धर्म स्वीकार कर लिया । ___वहाँ से वह घर लौट कर आया तो अपनी पत्नी संघमित्रा से बोला"वहाँ श्रमण भगवान् महावीर पधारे हैं। तुम उनके पास जाओ और पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षाबत स्वीकार करो।" अग्निमित्रा ने सद्दालपुत्र की बात स्वीकार कर ली।"
उसके बाद सदालपुत्र ने अपने कौटुम्बिक पुरुष को बुलाया और चुला कर कहा
"हे देवानुप्रियो ! जल्दी चलने वाले, प्रशस्त और सदृश रूपवाले, समान खुर और पूंछ वाले, समान रंग से रंगे सींग वाले, सोने के कलाप' आभूषणों से युक्त, चाल में उत्तम, रजत की घंटियों से युक्त, स्वर्णमय सुतली से नाथ से बाँधे हुए, नीलकमल के समान शिरपेच वाले, दो युवा और उत्तम बैलों से युक्त, अनेक प्रकार को मणिमय घंटियों से युक्त, उत्तम काष्ठमय जूए और जोत की उत्तम डोरी से उत्तम रीति से जुते हुए प्रवर लक्षण युक्त, धम्मिय यानप्रवर उपस्थित करो।
उसके बाद अग्निमित्रा ने स्नान किया यावत् कौतुक मंगल और प्रायश्चित करके शुद्ध होकर तथा प्रवेश योग्य वस्त्र पहन कर, अल्प और महामूल्य वाले अलंकारों से शरीर का शृंगार कर चेटिओं तथा दासिओ के समूह से घिरी हुई धार्मिक श्रेष्ठ यान पर चढ़ी और पोलासपुर नगर के मन्त्र भाग में से होती हुई सहस्राप्रवन उद्यान में जहाँ भगवान् महावीर थे
१-कलापौ-ग्रीवाभरण विशेषौ ।
२-यह 'धम्मिय' इसी अर्थ में औपपातिकसूत्र में भी आया है। सूत्र ३० की टीका में टीकाकार ने लिखा है-धर्मणि नियुक्ता-औपपातिक सटोक, पत्र ११८ ।।
३-'यान प्रवर'-सम्बंधी यह पाठ भगवतीसूत्र सटीक, शतक ६, उद्देशा ६ सूत्र ३८, पत्र ८३८ में देवानंदा के प्रकरण में भी आता है।
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