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________________ ४७४ तीर्थङ्कर महावीर पोलासपुर के मध्यभाग में से होता हुआ जहाँ सहस्राम्रवन था वहाँ गया। वहाँ भगवान् की तीन बार प्रदक्षिणा की तथा उनका वंदननमस्कार करके पर्युपासना की । उसके बाद भावान् ने धर्मोपदेश किया और धर्मोपदेश के पश्चात् उन्होंने सद्दालपुत्र से पूछा--"सद्दालपुत्र कल मध्याह्न काल में जब तुम अशोकवनिका में थे, तुम्हारे पास एक देव आया था ?" इसके बाद भगवान् ने देव द्वारा कथित सारी बात कह सुनायी । भगवान् ने पूछा-"क्या उसके बाद तुम्हारा यह विचार हुआ कि तुम उसकी सेवा करोगे ? पर, हे सद्दालपुत्र ! उस देव ने मंखलिपुत्र गोशालक के निमित्त वह नहीं कहा था।" श्रमण भगवान् महावीर की बात सुनकर सदालपुत्र के मन में विचार हुआ-"ये उत्पन्न ज्ञान-दर्शन के धारी यावत् सत्य कर्म की सम्पदा से युक्त भगवान् महावीर मेरे वंदन-नमस्कार करने के अतिरिक्त पीठ. आसन फलक आदि के लिए आमंत्रित करने योग्य हैं।" ऐसा विचार करके सद्दालपुत्र उठा और उठकर भगवान् का वंदन-नमस्कार करके बोला"हे भगवन् ! पोलासपुर नगर के बाहर मेरी कुम्भकार की :५०० दूकानें हैं। आप वहाँ (प्रातिहारिक ) पीठ, फलक यावत् संथारा ग्रहण करके निवास करें । भगवान् ने सद्दालपुत्र की बात स्वीकार कर ली और उसकी दूकानों में विहार करने लगे । - इसके बाद एक बार आजीविकोपासक सद्दालपुत्र हवा से कुछ सूखे हुए मृत्तिकापात्रों को अंदर से निकाल कर धूप में सूखने के लिए रख रहा था। सदालपुत्र को प्रतिबोध उस समय भगवान् ने सद्दालपुत्र से पूछा--- "हे सद्दालपुत्र ! यह कुलाल भाण्ड कहाँ से आया और कैसे उत्पन्न हुआ ?' इस प्रश्न पर सद्दालपुत्र बोला-"यह पहले मिट्टी थी। इसे पानी में भिगोया गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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