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________________ सद्दालपुत्र ४७३ और, मूल के 'व्हाए जाव पायच्छिते' पाठ में से 'पायच्छिते' का अनुवाद छोड़ गये । यह पाठ औपपातिकसूत्र में दो स्थलों पर आता है ( औपपातिकसूत्र सटीक, सूत्र ११ पत्र ४२ तथा सूत्र २७ पत्र १११ ) । औपपातिकसूत्र का जो अनुवाद घासीलाल ने किया, उसमें 'बलिकम्म' का अनुवाद पृष्ठ १०६ पर 'पशु-पक्षी आदि के लिए अन्न का विभाग - रूप बलिकर्म किया' और पृष्ठ ३५८ पर उसका अर्थ 'काक आदि को अन्नादिदान-रूप बलिकर्म किये' किया है । घासीलाल स्थानकवासी हैं, पर उनका यह अर्थ स्वयं स्थानकवासी लोगों को भी अमान्य है । स्थानक - वासी विद्वान रतनचंद्र ने अर्द्धमागधी कोष ५ भागों में लिखा है, उसमें बलिकर्म का अर्थ उन्होंने भाग ३, पृष्ठ ६७२ पर 'गृहदेवता की पूजा' ( सूत्र ११ ) तथा 'देवता के निमित्त दिया जाने वाला' ( सूत्र २७ ) दिया है। रतनचन्द्र जी के इस उद्धरण से ही स्पष्ट है कि, घासीलाल ने कितनी अनधिकार चेष्ट की है ! प्राचीन भारत में स्नान के बाद यह सब क्रियाएं करने की परम्परा सभी में थी, चाहे वह अन्यतीर्थिक हो अथवा श्रावक व्रतधारी । यह बात औपपातिकसूत्र वाले पाठ से स्पष्ट है, जिसमें कृणिक राजा ( सूत्र ११ ) तथा उसके अधिकारी ( सूत्र २७ ) इन क्रियाओं को करते हैं । डा० जगदीशचन्द्र जैन ने 'लाइफ इन ऐंसेंट इंडिया' में उसका ठीक अर्थ किया है — " हैविंग मेड द' आफरिंग टु द ' हाउस - गाड्स" (पृष्ठ २३५ ) वेचरदास ने 'भगवान् महावीर ना दश उपासकों' में ( पृष्ठ ४१ ) यह पूरा प्रसंग ही छोड़ दिया । भगवान् के पास जान इन स्नोत्तर क्रियाओं के बाद सद्दालपुत्र शुद्ध और प्रवेश योग्य वस्त्र पहन कर बहुत से मनुष्यों के साथ अपने घर से बाहर निकला और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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