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तीर्थकर महावीर
स्नानोत्तर क्रियाएं यह पाठ सद्दालपुत्र की पत्नी अग्निमित्रा के प्रसंग में भी आया है । वहाँ टीकाकार ने लिखा है:
स्नाता 'कृतबलिकर्मा' बलिकर्म–लोकरूढं 'कृत कौतुकमङ्गलप्रायश्चिता' कौतुकं-मषोपुण्ड्रादि, मंगलं-दध्यक्षत चन्दनादि श्ते एव प्रायश्चितमिव प्रायश्चितं दुःस्वप्नादि प्रति. घातक त्वेनावश्यंकार्य त्वादिति'
-उवासगदसाओ सटीक, पत्र ४४-१ ऐसा पाठ कल्पसूत्र में स्वप्न पाठकों के प्रसंग में भी आता है ( कल्पसूत्र सुबोधिका टीक सहित, सूत्र ६७ पत्र १७५ ) इसकी टोका संदेह विपौषधि टीका में आचार्य जिनप्रभ ने इस प्रकार की है:----
'कयबलि कम्मे त्यादि' स्नानानंतरं कृतं बलिकर्मः यैः स्वगृहदेवतानां तत्तथा, तथा कृतानि कौतुक मंगलान्येव प्रायश्चितानि दुःस्वप्नादिविघातार्थमवश्य करणीयत्वाद्यैस्तैस्तथा, तत्र कौतुकानि मषीतिलकादीनि, मंगलानि तु सिद्धार्थदध्यक्ष तदुर्वाकुरादीनि अन्येत्वाहुः
'पायच्छित्ता' पादेन पादे वा छुप्ताश्चक्षुर्दोषपरिहारार्थ पादच्छुप्ताः कृतकोतुक मंगलाश्च ते पादच्छुनाश्चेति विग्रहः तथा शुद्धात्मानः स्नानेन शुचीकृतदेहाः
-पत्र ७७ ठीक इसी प्रकार कल्पसूत्र की टिप्पन में आचार्य पृथ्वीचन्द्र सरि ने भी लिखा है ( पवित्र कल्पसूत्र, कल्पसूत्र टिप्पनकम् , पृष्ठ १०)
घासीलाल जी ने उपासकदशांग का जो अनुवाद किया है, उसमें उन्होंने 'जाव' को वर्णक से पूरा तो किया, पर 'बलिकम्म' छोड़ गये ।
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