________________
सद्दालपुत्र
४७१ वहाँ आकर वह मंखालिपुत्र गोशालक के पास स्वीकार की हुई धर्मप्रज्ञप्ति को स्वीकार करके विचरण करने लगा। उसके बाद आजीविकोपासक सदालपुत्र के पास एक देव आया। वह श्रेष्ठ वस्त्र धारण किए हुए था ।
आकाश में स्थित रहकर उस देव ने इस प्रकार कहा-"भविष्य में यहाँ महामाहण, उत्पन्न ज्ञान-दर्शन धारण करने वाला, अतीत-वर्तमान-और भविष्य का जानने वाला, अरिहंत, जिन, केवली, सर्वज्ञ और सर्वदर्शी, तीनों लोकों के लिए अवलोकित, महित और पूजित, देव मनुष्य-असुर सबके अर्चनीय, वंदनीय, सत्कार करने योग्य, सम्मान करने योग्य, कल्याण, मंगल देव और चैत्य के समान उपासना करने योग्य, सत्य कर्म की संपति युक्त पुरुष आने वाला है । इसलिए तू उनकी वंदना करना यावत् पर्युपासना करना । तथा प्रातिहारिक (जो वापस लिया जा सके) पीठ, फलग, शय्या, वसति, और संस्तारक के लिए आमंत्रित करना ।” इस प्रकार दूसरी और तीसरी बार ऐसा कह कर, वह देव जिधर से आया था, उधर चला गया ।
देव के ऐसे वचन सुनकर सद्दालपुत्र को इस प्रकार अध्यावसाय हुआ-"इस प्रकार के तो खरेखर हमारे धर्माचार्य (गोशालक) हैं। वे ही इन गुणों से युक्त हैं । वे ही यहाँ शीघ्र आने वाले हैं। मैं उनकी वंदना करूँगा यावत् पर्युपासना करूँगा तथा प्रातिहारिक यावत् संस्तारक के लिए आमंत्रित करूँगा।"
उसके बाद सूर्योदय होते वहाँ भगवान् महावीर स्वामी पधारे । उनकी वंदना करने के लिए परिषदा निकली यावत् उनकी पर्युपासना की। सद्दालपुत्र को इन सब से सूचना मिली कि श्रमण भगवान् महावीर विहार करते हुए यहाँ आये हैं । अतः उसे विचार हुआ-"मैं उनके पास जाकर उनकी वंदना तथा पर्युपासना करूँ।" ।
ऐसा विचार करके उसने स्नान यावत् प्रायश्चित किया ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org