SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 534
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६८ तीर्थंकर महावीर हेतु', प्रश्न, कारण व्याकरण' और उत्तर के सम्बंध में अल्पतीर्थिकों को निरुत्तर करता है, तो हे आर्यो ! द्वादशांग गणिपिटक का अध्ययन कर्ता श्रमण-निर्गंथ अन्यतीर्थिकों को निरुत्तर और निराश करने में शक्य है ।" उसके बाद कुंडकोलिक शील-व्रत आदि से अपनी आत्मा को भावित करता रहा । १४ वर्ष व्यतीत होने पर और १५ वें वर्ष के बीच में कामदेव के समान अपने ज्येष्ठ पुत्र को गृहभार देकर पोषधशाला में धर्मप्रज्ञप्ति स्वीकार करके रहने लगा । ११ प्रतिमाओं को पाल कर काल के समय में काल कर वह सौधर्मदेवलोक में अरुणध्वज विमान में उत्पन्न हुआ । शेत्र पूर्ववत जान लेना चाहिए । पृथ्वीशिलापट्टक सूत्र औपपातिक में पृथ्वी शिलापट्ट का वर्णक इस प्रकार है तस्स णं असोगवर पायवस्स हेट्ठा ईसि खंधसमल्लीगे एत्थ णं महं एक्के पुढविसिलापट्टए पण्णत्ते, विक्खं भायामउस्सेहसुप्पमाणे किण्हे अंजणघण किवाणकुवलय हलधरकोसेज्जागाल के सकज्जलंगी खंजणसिंगभेदरिहय जंबूफल असण कसण बंधणणी तुप्पलपत्तनिकर अयसि कुसुमपगासे मरकतमसार कलित्तणयण की परा सिवरणे णिद्धघणे सिरे श्रायंसयतलोवमे सुरम्मे ईहामियउ सभतुरगनर मगर विहग वालग किण्णररू रूस रभचमरकुंजर वणलय पउमलयभित्तिचित्ते श्रईणगरू १ हेतु —- श्रन्वयव्यतिरेक लक्षणैः- वही २ प्रश्नैः- - पर प्रश्नीयपदार्थों: - वही ३ कारणै —— उपपत्तिमात्र रूपैः - वही ४ व्याकरण —— पद्रेण प्रश्नितस्योत्तरदान रूपैः वही Jain Education International For Private & Personal Use Only -- www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy