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६ कुण्डको लिक
काम्पिल्पपुर - नगर में जितशत्रु राजा राज्य करता था और सहस्राम्रवननामक उद्यान था । उस नगर में कुंडकोलिक नामक गृहपति था । पुष्यानामकी उसकी भार्या थी । ६ करोड़ हिरण्य उसके विधान में थे, ६ करोड़ वृद्धि में थे और ६ करोड़ प्रविस्तर में लगे थे । उसके पास ६ व्रज थेप्रत्येक व्रज में १० हजार गौएँ थीं ।
भगवान् महावीर एक बार ग्रामानुग्राम विहार पुर आये । समवसरण हुआ और कामदेव के श्रावक-धर्म स्वीकार कर लिया ।
एक दिन कुंडकोलिक मध्याह्न के समय अशोकवनिका में जहाँ पृथ्वीशिलापट्ट था, वहाँ 'आया और वहाँ अपनी नाममुद्रिका तथा उत्तरीय पृथ्वी शिलापट्टक पर रख कर श्रमण भगवान् महावीर के पास स्वीकार की हुई धर्म-प्रज्ञप्ति को स्वीकार करके विचरने लगा ।
एक बार उस कुंडकोलिक श्रमणोपासक के पास एक देव प्रकट हुआ । उसने पृथ्वीशिलापट्टक से कुंडकोलिक की नाममुद्रिका और उत्तरीय वस्त्र उठा लिया । श्रेष्ठ वस्त्र धारण किये उस देव ने आकाश में स्थित रहकर कुंडकोलिक श्रमणोपासक से कहा - "हे देवानुप्रिय ! कुंडकोलिक श्रमणोपासक ! मंखलि - पुत्र गोशालक की धर्मप्रज्ञप्ति सुन्दर है, क्योंकि उसकी धर्मप्रज्ञप्ति' में उत्थान, कर्म, चल, बीर्य और पराक्रम नहीं है । सब कुछ नीति के आश्रित है; श्रमण भगवान् महावीर की धर्मप्रज्ञप्ति अच्छी नहीं
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करते हुए काम्पिल्पसमान कुण्डकोलिक ने
१ - -धर्मप्रज्ञप्तेः । प्रज्ञापनं प्रज्ञप्ति । धर्मस्य प्रज्ञप्तिः ततो धर्मप्रज्ञप्तेः । - दशा वैकालिक [ बाबूवाला ] पृष्ठ १४३ ।
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