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५ चल्लशतक
आलभिका-नामक नगरी में शंखवन-नामक उद्यान था और जितशत्रु नामक राजा राज्य करता था। उस नगरी में चुल्ल' शतक नामक एक गृहपति रहता था । वह आढ्य था । छः करोड़ हिरण्य उसके निधान में, ६ करोड़ व्याज में और ६ करोड़ हिरण्य विस्तार में थे। दस हजार गाय के एक व्रज के हिसाब से उसके पास ६ व्रज थे। उसकी भायां का नाम बहुला था। महावीर स्वामी का समवसरण हुआ। आनन्द-श्रावक के समान उसने भी भगवान् का धर्मोपदेश सुनकर गृहस्थ धर्म स्वीकार किया और कालान्तर में कामदेव के समान उसने धर्मप्रज्ञप्ति स्वीकार की।
एक रात को मध्य रात्रि के समय चुल्लशतक के सम्मुख एक देव प्रकट हुआ। तलवार हाथ में लेकर उसने चुल्लशतक से कहा-'हे चुल्लशतक ! तुम अपना शील भंग करो अन्यथा तुम्हारे ज्येष्ठय पुत्र को ले आऊँगा, उसका वध करूँगा। उसके मांस का सात टुकड़ा करूँगा। कड़ाही में उबालूंगा ।...” उस देव ने यह सब किया भी पर चुल्लशतक अपने व्रत पर दृढ़ रहा ।
अन्त में उस देव ने कहा-'हे चुल्लशतक ! यदि तुम अपना शील-व्रत भंग नहीं करते तो जितना धन तुम्हारे पास है, उसे तुम्हारे घर से लाकर शृंगाटक यावत् पथ पर सर्वत्र फेंक दूंगा। तू इसके नष्ट
१-'चुल्ल' शब्द का अर्थ है 'लघु' 'छोटा' ( दे० अर्धमागधी कोष रतनचन्द्रसम्पादित, भाग २, पृष्ठ ७३५ ) पर घासीलाल ने उवासगदसाओ के अनुवाद में 'चुल्ल' का अर्ध 'क्षुद्र' करके उसका नाम क्षुद्रशतक संकृत, हिन्दी, गुजराती तीनों भाषाओं में लिखा है। (पृष्ठ ४४८ ) पर यह सर्वथा अशुद्ध है। २-इसका पूरा पाठ इस प्रकार हैं:
सिंघाडग तिय चउक्क चच्चर चउमुह महापह पहेसु
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