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सुरादेव
४६३ ऐसी धमकी जब उस देव ने तीन बार दी तो तीसरी बार धमकी सुनकर सुरादेव के मन में उसके अनार्यपने पर क्षोभ हुआ और उसे पकड़ने चला। उस समय वह देव आकाश में उछल गया और सुरादेव के हाथ में खम्भा आ गया तथा वह चिल्लाने लगा। __ कोलाहल सुनकर सुरादेव की पत्नी आयी और चिल्लाने का कारण पूछने लगी । सुरादेव सारी कथा कह गया तो उसकी पत्नी ने आश्वासन दिया कि घर का कोई न लाया गया है और न मारा गया है। शेष पूर्ववत् ही है । अन्त में वह मरकर सौधर्मकल्प में अरुणकान्त विमान में उत्पन्न हुआ। वहाँ चार पल्योपम रहकर वह महाविदेह में जन्म लेने के बाद सिद्ध होगा।
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पष्ठ ४६२ पाद टिप्पणि का शेषांश
कुष्ठमष्टादशभेदं तदस्यास्तीति कुष्ठी, तत्र सप्तदश महाकुष्टानि, तद्यथाअरुणोदुम्बर निश्यजिह्वकपाल काकनादपौण्डरीकददू कुष्ठानीति महत्त्वं चैषां सर्वधात्वनुप्रवेशादसाध्यत्वाच्चेति एकादश जुद्रकुष्टानि तद्यथास्थूलारुष्क १, महाकुष्ठै २, ककुष्ठ ३, चर्मदल ४, परिसर्प ५, विसर्प ६, सिध्म ७, विचर्चिका ८, किटिभ ६, पामा १०, शतारुक ११ संशानीति
--आचारांग सटीक १, ६, १, पत्र २१२-२
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