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अथवा गम्भीर पाठक को सन्तोष दे सके। इस चुनौती की ओर मेरा ध्यान २५-३० वर्ष पहले गया था। मेरे मन में तभी से महावीर-चरित्र लिखने की इच्छा थी और मैंने अपना खोज-कार्य तभी प्रारम्भ कर दिया था। पर सुविधा के अभाव में, तथा अन्य कामों में व्यस्त रहने के कारण इस कार्य की ओर मैं अधिक समय न दे सका।
यहाँ बम्बई आने पर सेठ भोगीलाल लहरेचन्द झवेरी की वसति में निश्चित रहने का अवसर मिलने पर मैंने अपने मन में महावीर-चरित्र लिखने की दबी इच्छा पूर्ण कर लेने का निश्चय किया। वर्तमान ग्रन्थ 'तीर्थकर महावीर' वस्तुतः लगभग ६ वर्षों के प्रयास का फल है।
इस ग्रंथ का प्रथम भाग विजयादशमी २०१७ वि० को प्रकाशित हुआ । केवलज्ञान-प्राप्ति तक का भगवान् का जीवन उस ग्रंथ में है। प्रथम भाग के प्रकाशन के बाद समाचारपत्रों, अनुशीलन-पत्रिकाओं और विद्वानों ने उसका अच्छा सत्कार किया। उससे मुझे तुष्टि भी हुई और कार्य करने का मेरा उत्साह भी बढ़ा । यह द्वितीय भाग अब आपके हाथों में है। यह कैसा बन पड़ा है, इसके निर्णय का भी भार आप ही पर है। इस भाग में भगवान् के तीर्थंकर-जीवन, उनके मुख्य श्रमण-श्रमणियों, मुख्य श्रावक-श्राविकाओं तथा उनके भक्त राजाओं का वर्णन है। महावीर-चरित्र की शृंखला में ही इस ग्रन्थ में हमने रेवती-दान का भी विस्तारपूर्वक स्पष्टीकरण करने का प्रयास किया है। ऐसे तो भगवान् के उपदेश अति अगम-अथाह हैं; पर साधारण व्यक्ति
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