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'चैत्य' शब्द पर विचार
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चंदणकलसे चंदणघड़ सुकय तोरण पड़ियार देसभाए असितो वसित्त विडल वट्टवग्धारिय मल्लदामकलावे पञ्च चण्ण सरस सुरभि मुक्क पुष्क पुंजोवधार कलिए कालागुरु-पवरकु दुएक - तुरुक्क धूव मघमघंत गंधुद्धयाभि रामे सुगंधवर गंध गंधिए गंधवट्टिभूए ण्ड णट्टग जल्ल मल्ल मुट्ठिय वेलंबग पवग कहग लासग श्राइक्खग लेख मंख तूणइल्ल तुंब वीणिय भुयग मागह परिगए बहुजण जाणवयस्स विस्सुयकित्तिए बहुजणस्स
हुस्स आहुणिज्जे पाहुणिज्जे श्रञ्च णिज्जे बंदणिज्जे नमसणिजे पूयणिजे सक्कारणिजे सम्माणणिजे कल्लाणं मंगलं देवयं चेयं विणणं पज्जुवासणिजे दिव्वे सच्चे सच्चोचाए सण्णिहिप पडिहारे जाग सहहस भाग पड़िच्छर बहुजणो अच्चेह श्रागम्म पुण्णभद्द चेइयं ।
पूर्णभद्र नाम का एक मोरपिच्छी और वेदिका
- उस चम्पानगरी के उत्तर-पूर्वक दिशा के मध्यभाग में ईशानकोण में पूर्व पुरुषों द्वारा प्रज्ञप्त प्रशंसित उपादेय रूप में प्रकाशित बहुत काल का बना हुआ अत्यंत प्राचीन और प्रसिद्ध चैत्य था जो कि ध्वजा, घंटा, पताका, लोमहस्त, आदि से सुशोभित था । चैत्य के अंदर की भूमि गोमयादि से लिपी हुई थी और दीवारों पर श्वेत रंग की चमकीली मिट्टी पुती हुई थी और उन पर चंदन के थापे लगे हुए थे । वह चैत्य चंदन के सुंदर कलशों से मंडित था और उसके हर एक दरवाजे पर चंदन के घड़ों के तोरण बँधे हुए थे । उसमें ऊपर नीचे सुगन्धित पुष्पों की बड़ी बड़ी मालाएं लटकायी हुई थीं। पाँच वर्ण वाले सुगंधित फूल और उत्तम प्रकार के सुगंधि युक्त धूपों से वह खूब महक रहा था । वह चैत्य अर्थात् उसका प्रान्त भाग नट, नर्तक, जल्ल, मल्ल मौष्टिक, विदूषक, कूदने वाले, तरने वाले, ज्योतिषी, राम वाले, कथा वाले, चित्रपट दिखाने वाले, वीणा बजाने वाले और गाने वाले भोजक आदि लोगों से व्याप्त रहता था । यह चैत्य अनेक
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