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तीर्थकर महावीर बौद्ध-साहित्य में चैत्य शब्द का मूल अर्थ ही पूजा-स्थान है । बुद्धिस्टहाइब्रिड-संस्कृत-डिक्शनरी भाग २ में दिया है—सीम्स टु बी यूज्ड मोर ब्राडली दैन इन संस्कृत---एज एनी आब्जेक्ट आव वेनेरेशन (पृष्ठ २२३)
इतर साहित्य कौटिल्य अर्थशास्त्र
(१) पर्वसु च वितदिच्छत्रोल्लोमिकाहस्तपताकाच्छा गोपहारैः चैत्य पूजा कारयेत-कौटिल्य अर्थशास्त्र (मूल) पुष्ट २१० ।
(२) दैवत चैत्यं-वही, पृष्ठ २४४ ।
इसका अर्थ डाक्टर आर० श्यामा शास्त्री ने 'टेम्पुल' देवालय किया है ( पृष्ठ २७३ )।
(३) चैत्य दैवत्-वही, पृष्ठ ३७९ । इसका अर्थ डाक्टर शास्त्री ने 'आल्टर्स' लिखा है ( पृष्ठ ४०८ )
(४) प्रश्य पाश चैत्यमुपस्थाप्य दैवतप्रतिमाच्छिद्र प्रविश्यासीत् ( पृष्ठ ३९३ )।
इस पाठ से अर्थ स्पष्ट हैं । इस प्रकार के कितने ही अन्य स्थलों पर चैत्य शब्द कौटिल्य-अर्थशास्त्र में आता है।
इन प्रमाणों से स्पष्ट है कि 'चैत्य' देवप्रतिमा अथवा देवमंदिर ही है। उसका अर्थ 'साधु' अथवा 'ज्ञान' ऐसा कुछ नहीं होता।
अब हम कोषों के भी कुछ अर्थ उद्धृत करेंगे। ( १ ) अनेकार्थसंग्रह में हेमचन्द्राचार्य ने लिखा है:-- चैत्यं जिनौकस्तद्विम्बं चैत्यो जिनसभातरुः । उद्देशवृक्षश्चोद्यं तु प्रेर्ये प्रश्नेऽद्भुतेपि च ।। का० २, इलो० ३६२, पृष्ठ ३० । (२) चैत्य-संक्चुअरी, टेम्पुल ( पृष्ठ ४९७ ) । देवायतनं चैत्यं-(पृष्ठ १६१ ) वैजयन्ती-कोप
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