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'चैत्य' शब्द पर विचार
वृद्धहारीतरमृति बिम्बानि स्थापयेद् विष्णोामेषु नगरेषु च । चैत्यान्यायतनान्यस्य रम्याण्येव तु कारयेत ॥ इतरेषां सुराणां च, वैदिकानां जनेश्वरः । धर्मतः कारयेच्छश्वच्चैत्यान्यायतनानि तु ॥
इनके अतिरिक्त गृह्यसूत्रों में भी चैत्य शब्द आया है। आश्विलायन गृह्यसूत्र में पाठ है। चैत्ययज्ञ प्राक् स्विष्टकृतश्चैत्याय बलिं हरेत
-अ० १ खं० १२ सू. १ इसकी टीका नारायणी-वृत्ति में इस प्रकार दो है :
चैत्ये भवश्चैत्यः यदि कश्चिद्देवतायै प्रतिशृणोति । शंकरः पशुपतिः आर्या ज्येष्ठा इत्येवमादयो यद्यात्मनः अभिप्रेतं वस्तु लब्धं ततस्त्वामहमाज्येन स्थालिपाकेन पशुना वा यक्षामीति"
बौद्ध-साहित्य
बौद्ध-ग्रंथ ललितविस्तरा में आया है कि जिस स्थल पर छन्दक को बुद्ध ने आभरण आदि देकर वापस लौटाया था, वहाँ चैत्य बनाया गया । उस चैत्य को छन्दक-निवर्तन कहते हैं।
यत्र च प्रदेशे छन्दको निवृत्तस्तत्र चैत्यं स्थापितमभूत् । अद्यापि तच्चैत्यं छन्दकनिवर्तनामति ज्ञायते
—पृष्ठ १६६ पाली
इसी प्रकार जब बुद्ध ने अपना चूड़ामणि ऊपर फेंका तो वह योजन भर ऊपर जाकर आकाश में ठहर गया। शक ने उस पर चूड़ामणि-चैत्व की स्थापना की। तावतिसंभवने चूळामणि चेतियं नाम पतिठ्ठापेसि
- जातककथा (पालि ) पृष्ठ ४९
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