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तीर्थकर महावीर में और पालि में भी इसके प्रयोग मिलते हैं। अतः उसके अर्थ में किसी प्रकार का हेर-फेर करना सम्भव नहीं है। ___चैत्य-शब्द का प्रयोग किस रूप में प्राचीन साहित्य में हुआ है, अब हम यहाँ उसके कुछ उदाहरण देंगे।
धार्मिक साहित्य (संस्कृत) बाल्मीकीय रामायण (१) चैत्यं निकुंभिलामद्य प्राप्य होमं करिष्यति
___युद्धकाण्ड, सर्ग ८४, श्लोक १३, पृष्ठ २३८ इन्द्रजीत निकुंभिला देवी के मंदिर में यज्ञ करने बैठा है।
(शास्त्री नरहरि मग्नलाल शर्मा-कृत गुजराती-अनुवाद) भाग २, पृष्ठ १०९८ । (२) निकुम्भिलामभिययौ चैत्यं रावणिपालितम्
-युद्ध काण्ड, सर्ग ८५, श्लोक २९, पृष्ठ २४० लक्ष्मण रावणपुत्र की रक्षा करने वाले निकुम्भिला के मन्दिर की ओर जा निकले।
-गुजराती-अनुवाद, पृष्ठ १०९९ इसी रूप में 'चैत्य' शब्द वाल्मीकीय रामायण में कितने ही स्थलों पर आया है। विस्तारभय से हम यहाँ सभी पाठ नहीं दे रहे हैं।
महाभारत शुचिदेशयनड्वानं देवगोष्ठं चतुष्पथम् । ब्राह्मणं धार्मिक चैत्यं, नित्यं कुर्यात् प्रदक्षिणाम् ॥
-शांतिपर्व, अ० १९३ आचार्य नीलकंठ ने 'चैत्य' की टीका देवमन्दिर की है।
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