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'चैत्य' शब्द पर विचार
उवासगदसाओ में पाठ आता है.-'अरिहंत चेझ्याई ।' हार्नल ने जो ‘उवासगदसाओ' सम्पादित किया उसमें मूल में उन्होंने यह पाठ निकाल दिया । और, पादटिप्पणि में पाठान्तर रूप से उसे दे दिया ( पृष्ठ २३ )। यद्यपि हार्नेल ने मूल पाठ से उक्त पाठ तो निकाल दिया, पर टीका में से निकालने की वह हिम्मत न कर सके और वहाँ उन्होंने टीका दी है-'चैत्यानि अर्हत्प्रतिमालक्षणानि (पृष्ठ २४)। मूल में से उन्होंने यह पाठ निकाला क्यों, इसका कारण उन्होंने अपने अंग्रेजी-अनुवाद वाले खंड की पादटिप्पणि में दिया है--उनका कहना है कि, यदि यह मूलग्रंथ का शब्द होता तो 'चेइयाणि' होता और तब 'परिग्गहियाणि' से उसका मेल बैटता। पर, यहाँ पाठ 'चेइयाणि' के बजाय 'चेइयं' है । इस कारण यह सन्देहास्पद है ( पृष्ठ ३५ ) । पर, हार्नेल को यह ध्यान में रखना चाहिए था कि यह गद्य है, पद्य अथवा गाथा नहीं है कि तुक मिलना आवश्यक होता।
दूसरी बात यह कि, यद्यपि हानल ने ८ प्रतियों से ग्रन्थ सम्पादित किया; पर सभी प्रतियाँ उनके पास सदा नहीं रहीं। और, सब का उपयोग हार्नेल पूरी पुस्तक में एक समान नहीं कर सके | इस कारण पाट मिलाने में हार्नेल के स्रोतों में ही बड़ा वैभिन्न रहा । पर, यदि हार्नेल ने जरा भी गद्य-पद्य की ओर ध्यान दिया होता तो यह भूल न होती। जब टीका में हार्नेल ने इस पाठ का होना स्वीकार किया तो इसका तात्पर्य यह हुआ कि टीकाकार के समय में यह पाठ मूल में था—नहीं तो वह टीका क्यों करते ? और, टीकाकार के समय में यह पाठ था तो हार्नेल, को ऐसी कौनसी प्रति मिली जो टीकाकार के काल से प्राचीन और प्रामाणिक हो । यह
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