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आनन्द
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तत्र, आनंद ने कहा- "तब तो भगवन् आप ही आलोचना कीजिये यावत् तपः- कर्म स्वीकार कीजिये ।"
शंकित गौतम स्वामी वहाँ से चल कर भगवान् के निकट आये और भगवान् से आनंद श्रावक के अवधिज्ञान प्राप्त होने की बात पूछी । भगवान् ने उसकी पुष्टि की और कहा - " हे गौतम ! तुम्हीं उस स्थान के विषय में आलोचना करो और इसके लिए आनंद श्रावक को खमाओ ।" गौतम स्वामी ने तद्रूप ही किया ।
अंत में आनंद श्रावक ने बहुत से शील- व्रत आदि से भावित करके, बीस वर्ष पर्यन्त श्रावक धर्म पाल कर, ११ प्रतिमाओं का भली भाँति पालन कर, एक मास की आत्मा को जूषित कर, अनशन द्वारा साठ भक्तों का त्याग प्रतिक्रमण करके समाधि को प्राप्त होकर काल समय में करके, सौधर्मावतंसक महाविमान के ईशान कोण में स्थित में देव पर्याय से उत्पन्न हुआ ।
१. उवास गदसाओ, अध्ययन १.
एक बार गौतम स्वामी ने पूछा - "हे भगवन् ! वहाँ से च्यव कर आनन्द श्रावक कहाँ उत्पन्न होगा ?" भगवान् ने कहा - "वह महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर उसी भव में सिद्ध होगा ।" "
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आत्मा को श्रावक की संलेखना से
कर आलोचना
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काल को प्राप्त अरुण विमान
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