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________________ ४४० तीर्थकर महावीर की, उसके बाद पात्रों और वस्त्र की प्रतिलेखन की, प्रतिलेखना करके वस्त्र-पात्रों का प्रमार्जन किया, प्रमार्जना करके पात्रों को ग्रहण किया और उसे लेकर भगवान् महावीर के निकट गये । और भिक्षा के लिए जाने की अनुमति माँगी । भगवान् ने कहा--"जिसमें सुख हो वैसा करो।" तब गौतम स्वामी चैत्य से बाहर निकले और वाणिज्य ग्राम नगर में पहुँचे और भिक्षाचर्या के उत्तम मध्यम और निम्न कुलों में भ्रमण करने लगे। भिक्षा ग्रहण करके लौटते हुए जब वह कोल्लागसन्निवेश के समीप जा रहे थे, तो उन्होंने लोगों को परस्पर बात करते सुना-"देवानुप्रियो ! श्रमण भंगवान् महावीर के शिष्य आनन्द श्रावक पोषधशाला में अपश्चिम यावत् मृत्यु की आकांक्षा न करते हुए विचरते हैं।' ऐसा सुनकर गौतम स्वामी को आनन्द को देखने की इच्छा हुई। ... वह वहाँ गये तो उन्हें आते देखकर आनंद श्रावक ने कहा- "भगवन् इस विशाल प्रयत्न से यावत् नस-नस रह गया हूँ। अतः देवानुप्रिय के समीप आकर वंदन-नमस्कार करने में असमर्थ हूँ। आप यहाँ पधारिये तो मैं आपका वंदन-नमस्कार करूँ ।” .. गौतम स्वामी वहाँ गये तो वंदन-नमस्कार के पश्चात् गौतम स्वामी से आनंद ने पृछ।'--'हे देवानुप्रिय ! क्या गृहस्थ को अवधिज्ञान उत्पन्न हो सकता है ?” गौतम स्वामी ने कहा-----"हाँ! हो सकता है ।” उसके बाद आनंद श्रावक ने गौतम स्वामी को अपने अवधिज्ञान की सूचना दी और उस क्षेत्र को बताया जितनी दूर वह देख सकता था। इस पर गौतम स्वामी ने कहा-"आनंद ! गृहस्थ को अवधिज्ञान हो सकता है; पर इतना क्षेत्र वह नहीं देख सकता। इसलिए तुम आलोचना करो और तपस्या स्वीकार करो।" आनन्द ने यह सुन कर पूछा--"भगवन् ! क्या जिन-प्रवचन में सत्य, तात्त्विक, तथ्य और सद्भूत विषयों में भी आलोचना की जाती है ।” गौतम स्वामामी ने उसका नकारात्मक उत्तर दिया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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