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तीर्थकर महावीर उसने मुखवास-विधि का परिमाण किया और कहा- "पंचसौगंधिक ताम्बूल छोड़कर शेष सभी मुखवास विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।"
उसने चार प्रकार के अनर्थदंड का प्रत्याख्यान किया । वे अनर्थदंड हैं-१ अपध्यानाचरित, २ प्रमादाचरित ३ हिंस्रप्रदान ४ पाप कर्म का उपदेश ।
फिर, भगवान् महावीर ने आनन्द श्रावक से कहा--" हे आनंद जो जीवाजीव तत्त्व का जानकार है और जो अपनी मर्यादा में रहने वाला श्रमणोपासक है,उसे अतिचारों को जानना चाहिए; पर उनके अनुरूप आचरण नहीं करना चाहिए । इस प्रकार भगवान् ने अतिचार बताये, हम उन सब का उल्लेख पहले श्रावक धर्म के प्रसंग (पृष्ठ ३७४-४२१ ) में कर चुके हैं।
इसके बाद आनंद श्रावक ने भगवान् के पास ५ अगुव्रत और ७ शिक्षाक्त श्रावकों के १२ व्रत ग्रहण किये और कहा
"हे भगवान् ! राजाभियोग, गणाभियोग, बलाभियोग, देवताभियोगगुरुनिग्रह और वृत्ति कांतार' इन ६ प्रसंगों के अतिरिक्त आज से अन्य
१-एला लवङ्ग कपूर कक्कोल जातीफल लक्षणैः सुगन्धिभिव्यरभिसंस्कृतं पंचसौगन्धिकर ।
-ऊवासगदसाओ सटीक, पत्र ५.१ २-'नन्नत्थ रायाभियोगेणं' ति न इति-न कल्पते योऽयं निषेधः सोऽन्यत्र राजाभियोगात् तृतीयायाः पञ्चभ्यर्थत्वात् राजाभियोगं वर्जयिवेत्यर्थः । राजाभियोगस्तु-राजपरतन्त्रता गणः-समुदायस्तदभियोगः गणाभियोगस्तस्माद्बलाभियोगो नाम राजगणव्यतिरिक्तस्य बलवतः पारतंत्र्य, देवताभियोगो—देवपरतन्त्रता, गुरुनिग्रहो-माता पितृ पारबश्य, गुरुणां वा चत्य साधूनां निग्रहः--प्रत्यनीक कृतोपद्वो गुरुनिग्रहस्तत्रोपस्थितेतद्रक्षार्थ अन्ययूथिकादिभ्यो दददपि नाति कामति सभ्यकत्वामिति, 'वित्तिकांतारेणं' ति वृत्तिः जीविका तस्याः कान्तारं अरण्यं
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