________________
अानन्द
४३३ उसने धूप-विधि का परिमाण किया और कहा-"अगरु, तुरुक्क धूपादि को छोड़कर शेष सभी धूप-विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ। .
उसने भोजन-विधि का परिमाग करके पेयविधि का परिमाण किया और कहा-"काष्ठपेया' को छोड़कर शेष सभी पेयविधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।
उसने भक्ष्य-विधि का परिमाग किया और कहा-“घयपुण्ण और खण्डखज्ज को छोड़कर अन्य भक्ष्य-विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।"
उसने ओदन-विधि का परिमाग किया और कहा--- "कलम शालि को छोड़कर मैं अन्य सभी ओदनविधि का परित्याग करता हूँ।"
उसने सूप-विधि का परिमाण किया और कहा-“कलाय-सूप और मूंग-माष के सूप को छोड़कर शेष सभी सूपों का प्रत्याख्यान करता हूँ।"
उसने-घृत विधि का प्रत्याख्यान किया और कहा-"शरद ऋतु के घी को छोड़कर शेष सभी घृतों का प्रत्याख्यान करता हूँ।"
उसने शाक-विधि का प्रत्याख्यान किया-'चच्चू , सुत्थिय तथा मंडुक्किय शाक को छोड़कर शेष शाकों का प्रत्याख्यान करता हूँ।"
उसने माधुरक-विधि परिमाण किया--"पालंगामाधुरक को छोड़कर शेष सभी माधुरक-विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।"
उसने भोजन-विधि का परिमाण किया-"सेधाम्ल और दालिकाम्ल को छोड़कर शेष सभी जेमन-विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।"
उसने पानी विधि का परिमाण किया--"एक अंतरिक्षोदक पानी को छोड़कर शेष सभी पानी का परित्याग करता हूँ।" ।
१-कट्टपेज्जत्ति मुद्गादि यूषो घृततलित तण्डुलपेया वा ।
--उवासगदसाश्रो सटीक, पत्र ५-१
૨૮
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org