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तीर्थकर महावीर फिर दातुन-विधि का परिमाण किया और कहा-एक आर्द्र यष्टिमधु (मधुयष्टि) को छोड़कर शेष सभी दातूनों का प्रत्याख्यान करता हूँ।"
फिर फल-विधि का परिणाम किया और कहा--- "एक क्षीरामलक' फल को छोड़कर शेष सभी फलों का परित्याग करता हूँ।"
फिर अभ्यंग-विधि का परिमाण किया और कहा-'शतपाक और सहस्रापाक तेल को छोड़कर शेष अभ्यंगविधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।"
फिर उद्वर्तनाविधि ( उवटन ) का परिमाण किया और कहा"सुगंधि गंधचूर्ण के सिवा अन्य उद्वर्तन विधि का त्याग करता हूँ।
उसके बाद उसने स्नान-विधि का परिभाषा किया और कहा"आठ औष्ट्रिक ( घड़ा) पानी के सिवा अधिक पानी से स्नान का. प्रत्याख्यान करता हूँ।"
फिर उसने वस्त्र विधि का परिमाण किया और कहा-"एक क्षौमः युगुल को छोड़ कर शेष सभी वस्त्रों का प्रत्याख्यान करता हूँ।"
उसके बाद उसने विलेपन-विधि का परिमाण किया और कहा"अगर, कुंकुम, चंदन आदि को छोड़ कर मैं शेष सभी का प्रत्याख्यान करता हूँ।
फिर उसने पुष्प-विधि का परिमाण किया और कहा-"एक शुद्ध पद्म और मालती की माला छोड़ कर मैं शेष पुष्प-विधि का प्रत्याख्यान करता हूँ।"
उसने आभरण-विधि का परिमाण किया--"एक कार्णेयक ( कान का आभूषण ) और नाम-मुद्रिका को छोड़कर शेष अलंकारों का त्याग करता हूँ।"
३-अबद्धास्थिक क्षीरमिव मधुरं वा यदामलकं तस्मादन्यत्र (मीठा प्रामला)
-उवासगदसाश्रो सटीक, पत्र ४-२
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