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________________ ४३० तीर्थंकर महावीर उस आनन्द ने भगवान् महावीर के सामने स्थूलप्राणातिपाति प्रत्याख्यान किया और कहा-" मैं जीवन पर्यन्त द्विविध और त्रिविध मनवचन और काया से स्थूलप्रणातिपात (हिंसा ) न करूँगा और न कराऊँगा।" उसके बाद उसने मृपावाद का प्रत्याख्यान किया और कहा"मैं यावज्जीवन द्विविध-त्रिविध मन-वचन-काया से स्थूल मृषावाद का आचरण न करूँगा और न कराऊँगा। उसके बाद स्थूल अदत्तदान का प्रत्याख्यान किया और कहा"मैं यावज्जीवन द्विविध-त्रिविध मन-वचन-काया से न करूँगा और न कराऊँगा। _उसके बाद स्वपत्नी संतोष परिमाण किया और कहा--- "एक शिवानन्दा पत्नी को छोड़कर शेष सभी नारियों के साथ मैथुन-विधि का मन-वचन काया से प्रत्याख्यान करता हूँ। उसके बाद इच्छा का परिणाम करते हुए उसने हिरण्य तथा सुवर्ण का परिणाम किया और कहा--"चार हिरण्य कोटि निधि में, चार हिरण्य कोटि वृद्धि में और चार हिरण्यकोटि धनधान्धादि के विस्तार में लगा है। उसके सिवा शेष हिरण्य-सुवर्ण विधि का त्याग करता हूँ। उसके बाद चतुष्पद-विधि का परिमाण किया और कहा- "दस हजार गायों का एक ब्रज, ऐसे चार व्रज के सिवा बाकी चतुष्पदों का प्रत्याख्यान करता हूँ।" फिर उसने क्षेत्र-रूप वस्तु का परिमाण किया और कहा-"केवल पष्ठ ४२६ पाद टिप्पणि का शेर्षाश । वहाँ टीकाकार ने लिखा है-"अत्र त्रयाणां गुणवतानां शिक्षाव्रतेपु गणनात् सप्त शिक्षाव तानीत्युक्तम्'-तीन गुणब्रत तथा चार शिदावत में मिला देने से शिक्षावत सात हो जायगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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