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आनन्द
४२६ अपने घर से निकल कर वाणिज्य ग्राम के मध्य में से पैदल चला । उसके साथ बहुत-से आदमी थे। कोरंट की माला से उसका छत्र सुशोभित था । वह दुइपलास चैत्य में पहुँचा, जहाँ भगवान् महावीर ठहरे हुए थे । बायें से दायें उसने तीन बार भगवान् की परिक्रमा की और उनकी वंदना की ।
भगवान् ने आनंद को और वहाँ उपस्थित जन समुदाय को धर्मं का उपदेश दिया । उपदेश सुनकर जनता और राजा अपने-अपने घर वापस चले गये ।
आनन्द भगवान् के उपदेश को सुनकर बड़ा संतुष्ट और प्रसन्न हुआ और उसने भगवान् से कहा - " भन्ते ! मैं निर्गथ प्रवचन में विश्वास करता हूँ । निर्गेथ प्रवचन से सन्तुष्ट हूँ । निर्गन्थ-प्रवचन सत्य है । वह मिथ्या नहीं है । पर मैं उसे मैं साधु होने में असमर्थ हूँ । मैं १२ गृहिधर्म - ५ 'अणुव्रत और ७ शिक्षाएँ - स्वीकार करने को तैयार हूँ । हे देवानुप्रिय आप इसमें प्रतिबंध न करें । "
१. श्रावकों के लिए ५ अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत बताये गये हैं । पंचाणुव्वतिते सत्त सिक्खावतित्ते दुवालसविधे सावगधम्मे । - ठाणांगसूत्र सटीक ठाण ६, उद्देशा ३. सूत्र ६६३, पत्र ४६० २ ठाणांगसूत्र में ५ अणुव्रत इस प्रकार बताए गये हैं. :
पंचाणुब्वत्ता पं० तं ० - थूलातो पाणांइवायातो वेरमणं थूलातो मुसावायातो वेरमणं थूलातो अदिन्नादाणातो वेरमणं सदार संतोसे इच्छा
. परिमाणे ।
- ठाणांगसूत्र सटीक ठाणा ५, उद्देशा १, सूत्र ३८६, पत्र, २०११ । इसी प्रकार व्रतों का उल्लेख नायाघम्मकहा में भी है ।
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