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तीर्थंकर महावीर
'वाली थी और पति-भक्ता थी । आनन्द गृहपति के साथ वह पाँच प्रकार 'के काम भोगों' को भोगती हुयी सुख पूर्वक जीवन बिता रही थी ।
उस वाणिज्य ग्राम के उत्तर-पूर्व दिशा में कोल्लाग - नामक सन्निवेश था । वह सन्निवेश बड़ा समृद्ध था । उस कोल्लाग - सन्निवेश में भी आनन्द के बहुत से मित्र, सम्बन्धी, आदि रहते थे ।
भगवान् महावीर ग्रामानुग्राम में विहार करते हुए, एक बार वाणिज्य ग्राम आये । वहाँ समवसरण हुआ और जितशत्रु राजा उस समवसरण में गया ।
भगवान् के आने की बात जब आनन्द को उसने भगवान् के निकट जाने और उनकी किया । अतः उसने स्नान किया, शुद्ध वस्त्र पहने, आभूषण पहने और
ज्ञात हुई तो महाफल वंदना करने का निश्चय
१ - श्रहीण पडिपुराण पञ्चिन्दिय सरीरा लक्खण वञ्जण गुणोववेया माम्माण पमाण पडिपुराण सुजाय सव्वङ्गसुन्दङ्गी ससिसोमाकारकंत पिय दंसणा सुरुवा । - औपपातिकमूत्र सटीक, सूत्र ७, पत्र २३
२ - पाँच प्रकार के कामगुण ठाणांगसूत्र में इस प्रकार बताये गये हैं:
पंच कामगुणा पं० तं० पद्दा रूवा गंधा रसा फासा
- ठाणांगसूत्र, ठाणा ५, उद्देसा १, सूत्र ३६०, पत्र २६१-१ ऐसा ही उल्लेख समवायांग में भी है। देखिये समवाय सटीक, सूत्र ५, पत्र १०-१३
३. जितशत्रु राजा के समवसरण में जाने और वंदना करने का उल्लेख हमने राजाओं के प्रकरण दे दिया हैं।
४. यह आनन्द भगवान् से छद्मावस्था में भी मिल चुका था । १० वें वर्षावास के समय जब भगवान् वाणिज्यग्राम आये थे तो उस समय आनन्द उससे मिला था और उसी ने भगवान् को सूचित किया था कि निकट भविष्य में केवलज्ञान की प्राप्ति होने वाली है । देखिये तीर्थंकर महावीर, भाग १, उसे अवधिज्ञान था । आवश्यकचूर्ण में उल्लेख है :
तत्थ आणंदो नाम समो श्रातावेति तस्स य
वासो छ छठे हिन्नाणं
उपपन्नं—
- आवश्यक चूर्णि भाग १, पत्र ३०० ।
तद्रूप ही नियुक्ति में भी एक गाथा है
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भगवान् को पृष्ठ २१६ )
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