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________________ श्रानन्द तत्थ णं कोल्लाए संनिवेसे आणन्दस्स गाहावइस्स बहुए मित्त-नाइ - नियग-सयण-संबंधि- परिजणे परिवसई .... उस आनंद के पास ४ करोड़ हिरण्य निधान में था, ४ करोड़ हिरण्य वृद्धि पर दिया था तथा चार करोड़ हिरण्य के प्रविस्तार थे । इनके.. अतिरिक्त उसके पास ४ व्रज थे । हर व्रज में १० हजार गौएं थीं । * उसकी इस सम्पत्ति की ओर ही लक्ष्य करके ठाणांग की टीका में उसके लिए 'महर्द्धिक" लिखा है । ४२७ यह आनंद अपने नगर का बड़ा विश्वस्त व्यक्ति था । सार्थवाह तक सभी उससे बहुत से कार्यों में, कारणों में, कुटुम्बों में, गुह्य बातों में, रहस्यों में, निश्चयों में, और परामर्श लिया करते थे । वह आनंद ही अपने परिवार का आधारस्तम्भ था । उस आनन्द को शिवानंदा-नाम की भार्या थी । ४ – उवासगदसाओ ( वैद्य - सम्पादित ) सूत्र ४, पृष्ठ ४ । ५- ठाणांग, सटीक, पत्र ५०६-१ | ६ - पूरा पाठ इस प्रकार है: राइसर से लेकर मंत्रणाओं में, व्यवहारों में, १- -उवासगदसाओ ( वैद्य - सम्पादित ) सूत्र ८, पृष्ठ ४ । २ - 'हिरण्य' शब्द पर हमने तीर्थङ्कर महावीर, भाग १ में पृष्ठ १८०-१८१ विचार किया है । ३ - मूल शब्द यहाँ पवित्थर है । इसकी टीका करते हुए टीकाकार ने लिखा है:धनधान्यद्विपदचतुष्पदादिविभूति विस्तरः " - गोरे-सम्पादित उवासगदसा, पृष्ठ १५२ । Jain Education International वह अत्यन्त रूप For Private & Personal Use Only राईसर तलवर माडम्बिय कोडम्बिय सेट्ठि सत्थवाह -उवासगदसाओ (वैद्य सम्पादित ) ० १ सूत्र १२, पृष्ठ ५ www.jainelibrary.org
SR No.001855
Book TitleTirthankar Mahavira Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayendrasuri
PublisherKashinath Sarak Mumbai
Publication Year1962
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Story
File Size10 MB
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