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तीर्थकर महावीर कर उसे ज्ञातृक्षत्रिय मान लिया है।' वह प्रसंग जिसकी ओर पटेल का ध्यान गया इस प्रकार है :
मित्त जाव जेट्टपुत्तं ... 'कोल्लाए संनिवेसे नायकुलंसि पोसहसालाए।
यहाँ मित्त जाव जेहपुत्तं का पूरा पाठ इस प्रकार लेना चाहिए :
मित्तनाइ नियग संबन्धि परिजणं आमन्तेत्ता त्तमित्तनाइ नियग संबंधि परिजणं विलेऊणं वत्थगंध मल्लालंकारेण य सकारत्ता संमाणेत्ता तस्सेव मित्त'....'जणस्य पुरो जेट्टपुत्त कुडुम्बे ठवेत्ता।
इस 'जाव' वाले पूरे पाठ का मेल पटेल ने कल्पसूत्र के उस पाठ से मिलाया जहाँ भगवान् महावीर के जन्मोत्सव में भोज का प्रसंग आया है। वहाँ पाठ है :
........ मित्त-नाइ-नियग-सयण संधि-परिजणं नायए खत्तिए.......४
यहाँ अर्थ समझने में पटेल ने भूल यह की कि, पहले तो कल्पसूत्र में 'नायए' के साथ आये 'खत्तिए' की ओर उनका ध्यान नहीं गया और इस 'नाय' को उन्होंने उवासगदसाओं में 'मित्त जाव जेट्टपुत्री' में जोड़ लिया
और दूसरी भूल यह कि उवासगदसाओ में जो 'नायकुलंसि' शब्द है, वह 'पोसहसाला' के मालिक होने का द्योतक है, इस ओर उन्होंने विचार नहीं किया ।
उवासगदसाओ में कोल्लाग में उसके सम्बन्धियों में होने का जो मूल पाठ है वह इस प्रकार है:
१-श्रीमहावीर कथा, पष्ठ २८६ २-उवासगदसाओ ( पी० एल० वैद्य-सम्पादित ) पढम अज्मयणं पष्ठ १५ - ३-वही ( वर्णकादिविस्तार ) पष्ठ १२६-१३० ४- कल्पसूत्र सुबोधिका टीका सहित पत्र २५०-२५१
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