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तीर्थकर महावीर बौद्ध-ग्रन्थों में चक्रवर्ती के ७ रत्न बताये गये हैं (१) चक्ररत्न (२) हस्तिरत्न (३) अश्वरत्न (४) मणिरत्न (५) स्त्रीरत्न (६) गृहपतिरत्न और (७) परिणायकरत्न'
दीघनिकाय में कथा आती है कि एक बार एक चक्रवर्ती अपने गृहपति को लेकर नौका में बैठकर गंगा नदी की बीच धारा में जब पहुँचा तो गृहपति की परीक्षा लेने के लिए उसने गृहपतिरत्न से कहा-"गृहपति मुझे सोने-चाँदी की आवश्यकता है।" गृहपति ने उत्तर दिया-'तो महाराज ! नाव को किनारे पर ले चलें ।' तब चक्रवर्ती ने कहा-"गृहपति मुझे सोने-चाँदी की यही आवश्यकता है।” तब गृहपति ने दोनों हाथों से जल को छू सोने-चाँदी भरे धड़े निकाल कर राजा से पूछा--"क्या यह पर्यात है। क्या आप इतने से संतुष्ट हैं ?” चक्रवर्ती ने उत्तर दिया-"हाँ पर्यात है।
बौद्ध-ग्रन्थों में ही अन्यत्र चक्रवर्ती के चार गुणों वाले प्ररंग में भी चक्रवर्ती के गृहपति-परिषद् का उल्लेख किया गया है।
ऐसा ही उल्लेख चक्रवर्ती के रत्नों के प्रसंग में प्रवचनसारोद्धार में भी है । उसमें 'गाहावई' की टीका निम्नलिखित रूप में दी है :
चक्रवर्तिगृह समुचितेति कर्तव्यतापरः शाल्यादि सर्वधान्यानां समस्त स्वादुसहकारादि फलानां सकल शाक विशेषाणां निष्पादकश्च ४
त्रिषष्टिशलाकापुरुष में भरत चक्रवर्ती के दिग्विजय-यात्रा के प्रकरण में गृहपति का काम इस रूप में दिया है :
१-~-दीवनिकाय, हिन्दी-अनुवाद, पृष्ठ १५३-१५४ २--दीघनिकाय, हिन्दी-अनुवाद, पृष्ठ १५४-१५५ ३--दीघनिकाय, हिन्दी-अनुवाद पष्ठ १४३ ४-प्रवचनसारोद्धार सटीक द्वार २१२ पत्र ३५०-१
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