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कुछ
अधिक कह सकना
आप उसे पढ़े और उस पर विचार करें, कठिन है । पर, यहाँ इतना मात्र अवश्य कह देना चाहता हूँ कि, जैन - साहित्य का कुछ ऐसा अपना महत्व भी है कि यदि निष्पक्ष इतिहास लिखा जाये तो विश्व को जैन साहित्य का कितने ही बातों में ऋणी होना पड़ेगा ।
उदाहरण के लिए हम ल्यूमैन के लेख ( पृष्ठ ३४ ) से ही एक उद्धरण देना चाहेंगे :
उदाहरण लें - परिध और व्यास के बीच सम्बन्ध प्रकट करने के अंक का ठीक निर्णय करना बहुत कठिन है । पर वह उसमें दिया है और लगभग यह भी कहा जा सअता है कि इसने ही (स्वयं) विधान किया है । वह इस प्रकार है परिध = व्यास
X १० का वर्गमूल । अपने में प्रचलित यह अंक ३१1७ है ।" इससे हम यह मान सकते हैं कि महावीर ने स्वयं परिध = व्यास १० यह समीकरण शोध निकाला होगा । परिधि के अनेक हिसाबों से यह समीकरण सच आता है ।"
जैन - ज्योतिष के सम्बंध में डाक्टर हजारीप्रसाद का कथन है कि
"इस बात से स्पष्ट ही प्रमाणित होता है कि सूर्यप्रज्ञप्ति ग्रीक आगमन के पूर्व की रचना है "जो हो सूर्य आदि को द्वित्व प्रदान अन्य किसी जाति ने किया हो या नहीं, इसमें कोई सन्देह नहीं कि जैन - परम्परा में हो इसको वैज्ञानिक रूप दिया गया है । शायद इस प्रकार का प्राचीनतम उल्लेख भी जैन-शास्त्रों में ही
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